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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० ] मरू-गर्जर जैन कवि तसु मज्झि निविट्ठउ जलहर वन्नउ, सामिउ नेमि कुमारु । जिणि हेलई जित्तउ नव जुम्वण भरि, तिहण रगडण मारु ॥१ मन्त-रेवइ गिरि मंडणु पाव विहंडण, तिहुयण पणमिय पाय । भत्तिहि सथुणियउ इणि मणि रहिय उ, इकु तुहं जादव राय ।। तिम तिम तिम करि मह भालथलि, जिम हुइ नेमि तिल उ सुपहाणु जय जय जय जियवर तुह परमेसरु, जाम गयणि ससि भाणु ॥७ प्रतिलिपि-अभय जैन ग्रन्थालय (४८) अज्ञात (५८) श्री युगादि देव जन्माभिषेक कलश गा० २० मादि-निसुरणेहु भविय लोयह रोलवइ ऊण इक्कु वणयम्मे ... मद मयणादि भन्नइ जम्माभिसेयं च रिसहस्स ।। १ अन्त–त घणु सारि भवियणहु जिणह अभिसे उ विहिज्जइ । राय सोय जर मरण झत्ति, सुजलं जलि दिज्जइ ।। विहि करहु सरहु सुहगुरु वयण, भविय लोय भव भय हरण चित्त घड़ि न्हवरण रिसहेसरह, नर नरवर संतिहि करण ॥२० प्रतिलिपि-प्रभय जैन ग्रन्थालय (४६) अज्ञात (५९) श्री युगादि देव कलश गा० ५ आदि-जस्स पय पकयं निप्पडिम स्वयं ... सुर असुर नर खयर वयसी कयं । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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