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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चौदहवीं सदी इय वीरपह मुणिणा, रहउ चंदप्पहस्स देवस्स । जम्मा भिसेय महिमा, दिसउ सुहं सयल संघस्स ॥१७ प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय (४६) ख० जिनचन्द्रसूरि शि० (५६) श्री आदिनाथ बोली गा० ७ श्रादि- जो भुवण भूमण नाभि कुल-नर, वंसि वंस महद्धओ । मरुदेवि देवनई सुवन्न, कमल सिरि वसहद्धभो || वर राय मुणि केवलि जिणह धुरि, पंचसय धरणुहुच्चो । सेत्तुज्ज मेरि गिरिम्मि सुरतरु, आदि नाहु सु नंदन ॥१ अन्त - सोहम सामिण कमिण जिरगेसर, सूरि गोयम तुल्लनो तसुपट्टि सिरि जिणपबुहसूरि, तासु पद विज्जालउ जिणचन्दसूरि गुरु वएसि, जत्त करर जि पिक्ख ए सिंत्तुज्जि संठिय कउडि जक्खह, पमुह संघह रक्खए ॥७ वि. जिनचन्द्रसूरि का प्राचार्यकाल सं० १३४६ से १३७६ तक का है प्रतिलिपि अभय जैन ग्रन्थालय (४७) अज्ञात (५७) श्री नेमिनाथ बोली गा० ७ आदि - धनु धनु धनु सोरठ देसि पसिद्धउ, जिणि गिरवरु गिरनारु । उत्तंगु सु तोरण जसु सिरि सोहइ, भुवणि भुवर श्रइ चारु ।। For Private and Personal Use Only [ ३९
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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