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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आसिगु तेरहवीं सदी [ ११ एहु श्री जिणपति सूरि गुरु जुगपवरु, 'साह रयण' इम थुइ ए समरइ जे नर नारि निरंतर, तहा घर नव निधि संपजइ ए ॥ २० ॥ ( ० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ६ मूलप्रति - सं० १४९३ लिखित अभय जैन ग्रन्थालय संग्रह ग्रन्थ पुस्तिका Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४) भत्तउ ( ख० जिन पति सूरि श्रावक ) (१४) श्री जिन पति सूरि गीत गा० २० सं० १२७८ लगभग आदि - वीर जिणेसर नमीउ सुरेसर, तस पह पणमिय पय कमले । युगवर जिनपति सूरि गुणमंडन, गुण गण गाइसो मति रमले ||१|| अन्त चरण कमल नरवर सुर सेवइ, मंगल केलि निवास हुए । थूभह-रथण पालणपुर नयरिहिं तिहुषण पूरइ ए आसहुए ||१६|| लोणउ कमलेहि भमर जिम भत्तउ, पाय कमल पर्णामिय कहइ । समरइ ए जे नर नारि निरंतर, तिहां घरे रिद्धि नव निहि लहइए ||२०|| प्र० ऐ० जैन काव्य संग्रह पृ० ८ दि० शाह रयण एवं भत्तउ रचित गीत द्वय में छई पद्य व पंक्तियां तो एक ही हैं। दोनों गीत एक दूसरे से प्रभावित हैं । For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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