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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२२ ] www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मरु-गुर्जर जैन कवि नामि नव निधि पामीइ, वंछित फल दातार ॥१ सरसति सामिनि पाए नमु, मागू अविरल वाणि । सालिभद्र गुण वर्णवु ते चडयो सुप्रमाण १२ प्रन्त काशमीर काशी समु, मूलनायक श्रीपास; चितामणि श्री सामलु, वडित पूरी आस ।। ६६ सालिभद्र बीजउ सुरंगु, सुद्र सतन गदराज, गुजर न्याति कुलतिलु, कोधां उत्तम काज ॥६७ संवत पंनर वीसमि, नयर सोजीत्रा मध्य । देव भवन पद बिसणां, बिंब प्रतिष्ठा कीध ||६८ संवत पंनर पंच वीसमि भीम साह प्रासादि । अर्बुदगिरि श्री आदिजिन, थाप्या श्री गदराज ॥६६ तप गच्छ केरू राजिउ लिल्मीसागर राय । तासु सीसि गुण वर्णव्या, प्रणम् सदगुर पाय ॥७० भणतां भलपण पामीइ, सुणतां संपति होइ । सालिभद्र मुनिवर समु, अवर न बीजउ कोइ ॥ ७१ एक मन जे सांभलि, सालिभद्र नु रास । करजोड़ी सेवक भणि, करसि लील विलास ।।७२ इति श्री शालिभद्र नु फाग संपूर्णम् । For Private and Personal Use Only ( प्रारियण्टल इंस्टीच्यूट, बड़ौदा प्रति नं० १५५५२)
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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