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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पन्द्रहवीं सदी [ ૧૦૭ जमं जागती व जोइ वानी, वसई वासना तास दसइ न वानी ॥१ राजल कंत रूडउ । सुद्धिदं जगनाथ अन्त-मनि मानवउ एंड संसार कूड़उ, सदासेविवउ इसी मासनी बास (तास पूजद्द, जको भवा (१४५) अज्ञात (१७४) बारह व्रत चउपई गा० १९ पूजइ ॥५ प्रति० प्रमय ० श्रादि - वंदिवि वीरु भैविय निसुरोहु, प्रागमि कहिउ जिणेसर एहु । पणउ जिणेंवर धम्म महंतु, वारह व्रतह मूलि समकितु ॥ १ अखर एक न पास पारु, निसणहु धम्मिय धम्मविचारू । सुकृत प्रभाविहि सुगति होइ, सासय, सिवसूह पामइ सोइ ॥ २ अन्त - सती एक सहीजइ नारि, दिन्तु दानु को मास चियारि । कोसंबी नयरी सुविसाल, जगि जयवंती चंदण बाल ॥१८ बार व्रतं श्रावक संभलउ, भाव भगति मनु अविचल घरउ । सबउ वयण उ सउ कोइ, जीवदया विस्तु धरमु न होइ ॥ १९ प्रति० प्रभय० For Private and Personal Use Only ( १४६ ) अज्ञात ( १७५) सुगुरु समाचारी गा० ३२ प्रादि--दल हल हठि माणस जम्म, कीजय निरमल जिणवर घम्भ |
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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