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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra अज्ञात www.kobatirth.org पंद्रहवीं सदी [ ९५. बिबह संख्या तह गणिय जाणि, छ सहस उसय अडवाणीस मणि । इय नंदीसर वंदीय देव, अन्नवि सासय नमउ ससेवि ।।११ प्रतिलिपि- - अभय जैन ग्रन्थालय Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३०) अज्ञात (१५१) विमलाचल आदिनाथ स्तवनम् गा० २१ आदि-नाभिनरिद मल्हार, मुरुदेवि माडिय उरि रयण । अवगत रूपि अपारु, सामिय सेत्रुत्र सय थणिय ॥ १ - 4 अन्त य पय पंकय सेव, विमलाचल मंडण रिसह । ग्रह निसि पण देव, प्रवर न काई ईलियए ।।२१ प्रतिलिपि - अभय जैन ग्रन्थालय (१३१) अज्ञात ( १५२) धर्म प्रेरणा दोहा १५ प्रादि - जिणवर देवु सुसाह गुरु, जस हीयड़इ जिण धम्मु । सव्व कम्मु जयणा करइ, तस हइ सफलउ जम्मु ॥ १ अन्त - गंदूसही जे नितु करइ, अविचल मनि पालति । ती बीजय भवि देवत्त लहड़, कवड़ - जख जिमु हुति ॥१४. जीवदया साचउ वयण, परधन जे महिति । सील पालइ एक मनि, ते सहि सुख लहंति ।।१५ प्रतिलिपि - श्रभय जैन ग्रन्थालय -- For Private and Personal Use Only
SR No.034112
Book TitleJain Maru Gurjar Kavi Aur Unki Rachnaye
Original Sutra AuthorAgarchand Nahta
Author
PublisherAbhay Jain Granthalay
Publication Year1975
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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