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________________ Shri Mahavir Jain Nadhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit www.kobatirth.org कल्पसूत्र कल्पलता व्या०९ त्रयोदशी सामाचारी ||२५४॥ kakoKO. XXgirkoXBKOKOKARO तथ नो कप्पइ एगस्य निग्गंथस्य दुण्हं निग्गंधीणं एगयओ चिट्ठित्तए २, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गंथाणं एगाए य निग्गंथीए एगयओ चिट्टित्तए ३, तत्थ नो कप्पइ दुण्हं निग्गंथाणं दुण्हं निग्गंथीण य एगयओ चिट्ठित्तए ४, अस्थि य इत्थ केइ पंचमे खुड्डए वा खुड्डियाइ वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिदुवारे एव ण्हं कप्पइ एगयओ चिद्वित्तए ॥ ३८॥ वासावासं पज्जोसवियस्स निग्गंथस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविटुस्स निगिज्झिय २ वुट्टिकाए निवइजा, कप्पइ से अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अहे वियडगिहंसि वा अहे रुक्खमूलंसि वा उवागच्छित्तए, तत्थ नो कप्पइ एगस्स निग्गंथस्स एगाए य अगारीए एगयओ चिट्ठित्तए, एवं चउभंगी, अस्थि णं इत्थ केइ पंचमए थेरे वा थेरियाइ वा अन्नेसिं वा संलोए सपडिदुवारे, एवं कप्पइ एगयओ चिट्ठित्तए। एवं चेव निग्गंथीए अगारस्स य भाणियत्वं ॥ ३९ ॥ (१३) व्याख्या-"वासावासं” उक्तः पाणिपात्रकस्य जिनकल्पिकस्य विधिः, अथ पतद्ग्रहधारिणः स्थविरकल्पिकस्य विधिं आह-वर्षाकालं स्थितस्य पतनधारिणः साधोः "वग्घारियबुडिकायंसि" अच्छिन्नधारा वृष्टिः ****aaaxoxoxoxoxo ॥२५४॥ For Private and Personal Use Only
SR No.034110
Book TitleKalpasutra Kalpalati Tika
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorSamaysundar Gani,
PublisherJinduttasuri Gyanbhandar
Publication Year1939
Total Pages628
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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