SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सागर की लहरें विशाल महासागर में एक लहर चढ़ती-उतराती बही जा रही थी। ताज़ा हवा की लहरों में अपने ही पानी की चंचलता में मग्न। तभी उसने एक लहर को किनारे पर टकरा कर मिटते देखा। "कितना दुखद है" - लहर ने सोचा - "यह मेरे साथ भी होगा!" तभी एक दूसरी लहर भी चली आई। पहली लहर को उदास देखकर उसने पूछा - "क्या बात है? इतनी उदास क्यों हो?" पहली लहर ने कहा - "तुम नहीं समझोगी। हम सभी नष्ट होने वाले हैं। वहां देखो, हमारा अंत निकट है।" दूसरी लहर ने कहा - "अरे नहीं, तुम कुछ नहीं जानती। तुम लहर नहीं हो, तुम सागर का ही अंग हो, तुम सागर हो।" (अमेरिकी लेखक Mitch Albom की कहानी) १
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy