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________________ घर और पहाड़ तई नामक एक व्यक्ति का घर एक बहुत बड़े पहाड़ के पास था। तई की उम्र लगभग ९० वर्ष हो चली थी। उसके घर आने वाले लोगों को पहाड़ के चारों ओर घूमकर बड़ी मुश्किल से आना पड़ता था। तई ने इस समस्या का हल निकलने का सोचा और अपने परिवार वालों से कहा - "हमें पहाड़ को थोड़ा सा काट देना चाहिए।" उसकी पत्नी को छोड़कर सभी घरवालों ने उसके इस सुझाव को मान लिया। उसकी पत्नी ने कहा - "तुम बहुत बूढे और कमजोर हो गए हो। इसके अलावा, पहाड़ को खोदने पर निकलनेवाली मिटटी और पत्थरों को कहाँ फेंकोगे?" तई बोला - "मैं कमज़ोर नहीं हूँ। मिटटी और पत्थरों को हम पहाड़ की ढलान से फेंक देंगे." । अगले दिन तई ने अपने बेटों और पोतों के साथ पहाड़ में खुदाई शुरू कर दी। गर्मियों के दिन थे और वे पसीने में भीगे हुए सुबह से शाम तक पहाड़ तोड़ते रहते। कुछ महीनों बाद कडाके की सर्दियाँ पड़ने लगीं। बर्फ जैसे ठंडे पत्थरों को उठा-उठा कर उनके हाथ जम गए। इतनी मेहनत करने के बाद भी वे पहाड़ का ज़रा सा हिस्सा ही तोड़ पाए थे। एक दिन लाओ-त्जु वहां से गुजरा और उसने उनसे पूछा की वे क्या कर रहे थे। तई ने कहा की वे पहाड़ को काट रहे हैं ताकि उनके घर आने वालों को पहाड़ का पूरा चक्कर न लगाना पड़े। लाओ-त्ज़ ने एक पल के लिए सोचा। फ़िर वह बोला - "मेरे विचार में पहाड़ को काटने के बजाय तुमको अपना घर ही बदल देना चाहिए। अगर तुम अपना घर पहाड़ के दूसरी ओर घाटी में बना लो तो पहाड़ के होने-न-होने का कोई मतलब नहीं होगा।" तई लाओ-त्जु के निष्कर्ष पर विस्मित हो गया और उसने लाओ-त्जु के सुझाव पर अमल करना शुरू कर दिया। बाद में लाओ-त्जु ने अपने शिष्यों से कहा -"जब भी तुम्हारे सामने कोई समस्या हो तो सबसे प्रत्यक्ष हल को ठकरा दो और सबसे सरल हल की खोज करो." 28
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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