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________________ "मैडम, एक बार मैं देहात में अपने अंधे मित्र के साथ घूम रहा था और मैंने उससे कहा कि मुझे दूध पीने की इच्छा हो रही है"। "दूध?" - मेरे मित्र ने कहा - "पीना तो मैं समझता हूँ लेकिन दूध क्या होता है?" "दूध एक सफ़ेद द्रव होता है" - मैंने जवाब दिया। "द्रव तो मैं जानता हूँ लेकिन सफ़ेद क्या होता है?" "सफ़ेद - जैसे हंस के पंख"| "पंख तो मैं महसूस कर सकता हूँ लेकिन ये हंस क्या होता है?" "एक पक्षी जिसकी गरदन मुडी सी होती है"। "गरदन तो मैं जानता हूँ लेकिन यह मुडी सी क्या है?" "अब मेरा धैर्य जवाब देने लगा। मैंने उसकी बांह पकड़ी और सीधी तानकर कहा - "यह सीधी है!" - फ़िर मैंने उसे मोड़ दिया और कहा - "यह मुडी हुई है"। "ओह!" - अंधे मित्र ने कहा - "अब मैं समझ गया दूध क्या होता है"। * * * * * जब आइन्स्टीन विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे तब एक दिन एक छात्र उनके पास आया। वह बोला - "इस साल की परीक्षा में वही प्रश्न आए हैं जो पिछले साल की परीक्षा में आए थे"। "हाँ" - आइन्स्टीन ने कहा - "लेकिन इस साल उत्तर बदल गए हैं"। * * * * * एक बार किसी ने आइन्स्टीन की पत्नी से पूछा - "क्या आप अपने पति का सापेक्षता का सिद्धांत समझ सकती हैं?" "नहीं" - उन्होंने बहुत आदरपूर्वक उत्तर दिया - "लेकिन मैं अपने पति को समझती हूँ और उनपर यकीन किया जा सकता है।" * * * * * 199
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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