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________________ आइन्स्टीन के बहुत सारे प्रसंग और संस्मरण अलबर्ट आइन्स्टीन ने तीन साल का होने से पहले बोलना और सात साल का होने से पहले पढ़ना शुरू नहीं किया। वे हमेशा लथड़ते हुए स्कूल जाते थे। अपने घर का पता याद रखने में उन्हें दिक्कत होती थी। उन्होंने देखा कि प्रकाश तरंगों और कणिकाओं दोनों के रूप में चलता है जिसे क्वानटा कहते हैं क्योंकि उनके अनुसार ऐसा ही होता है। उन्होंने उस समय प्रचलित ईथर सम्बंधित सशक्त अवधारणा को हवा में उड़ा दिया। बाद में उन्होंने यह भी बताया कि प्रकाश में भी द्रव्यमान होता है और स्पेस और टाइम भिन्न-भिन्न नहीं हैं बल्कि स्पेस-टाइम हैं, और ब्रम्हांड घोड़े की जीन की तरह हो सकता है। अमेरिका चले जाने के बाद आइंस्टाइन की एक-एक गतिविधि का रिकार्ड है। उनकी सनकें प्रसिद्द हैं - जैसे मोजे नहीं पहनना आदि। इन सबसे आइंस्टाइन के इर्द-गिर्द ऐसा प्रभामंडल बन गया जो किसी और भौतिकविद को नसीब नहीं हुआ। आइन्स्टीन बहुत अब्सेंट माइंड रहते थे। इसके परिणाम सदैव रोचक नहीं थे। उनकी पहली पत्नी भौतिकविद मिलेवा मैरिक के प्रति वे कुछ कठोर भी थे और अपनी दूसरी पत्नी एल्सा और अपने पुत्र से उनका दूर-के-जैसा सम्बन्ध था। * * * * * आइन्स्टीन को एक १५ वर्षीय लड़की ने अपने होमवर्क में कुछ मदद करने के लिए चिट्ठी लिखी। आइन्स्टीन ने उसे पढ़ाई से सम्बंधित कुछ चित्र बनाकर भेजे और जवाब में लिखा - "अपनी पढ़ाई में गणित की कठिनाइयों से चिंतित मत हो, मैं तुम्हें यकीन दिलाता हूँ कि मेरी कठिनाइयाँ कहीं बड़ी हैं"। * * * * * सोर्बोन में १९३० में आइन्स्टीन ने एक बार कहा - "यदि मेरे सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि हो जाती है तो जर्मनी मुझे आदर्श जर्मन कहेगा, और फ्रांस मुझे विश्व-नागरिक का सम्मान देगा। लेकिन यदि मेरा सिद्धांत ग़लत साबित होगा तो फ्रांस मुझे जर्मन कहेगा और जर्मनी मुझे यहूदी कहेगा"। * * * * * किसी समारोह में एक महिला ने आइंस्टीन से सापेक्षता का सिद्धांत समझाने का अनुरोध किया। आइन्स्टीन ने कहा: 198
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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