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________________ बांज़ो ने माताजुरो से कहा कि तलवारबाजी तो दूर, वह 'तलवार' शब्द का भी भूल से भी उच्चारण न करे। माताजुरो दिन भर बांज़ो की सेवा में खटने लगा। वह उसका भोजन बनाता, साफ़-सफाई करता, कपड़े धोता, और भी तरह-तरह के काम करता। उसने तलवारबाजी या तलवार का नाम भी नहीं लिया । तीन साल गुज़र गए । माताजुरो सबह से रात तक बांजों के लिए काम करता रहता। अपने भविष्य के बारे में सोचकर वह उदास हो जाता था। जिस विद्या को सीखने के लिए वह पूरा जीवन झोंक देने को तैयार था, उसका नाम लेने की भी उसे अनुमति नहीं थी। एक दिन माताजुरो चावल बना रहा था तभी पीछे से बांज़ो दबे पाँव आया और उसने माताजुरो पर लकड़ी की तलवार से जोरदार प्रहार किया। अगले दिन जब माताजुरो किसी और काम में लगा हुआ था, बांजो ने एक बार और उसपर अत्प्रश्याशित प्रहार किया । इसके बाद तो दिन हो या रात, माताजुरो को हर कभी स्वयं को बांज़ो के आघातों से ख़ुद को बचा पाना मुश्किल हो गया। पहले तो प्रहार जागते में ही होते थे, बाद में सोते में भी होने लगे। कुछ ही महीनों में बांज़ो असली तलवार से उसपर प्रहार करने लगा। एक पल भी ऐसा नहीं बीतता था जब वह बांज़ो के प्रहारों के बारे में नहीं सोचता था। माताजुरो तलवारबाजी में जल्द ही निपुण हो गया। वह अपने समय का सर्वश्रेष्ठ तलवारबाज़ कहलाया । 164
SR No.034108
Book TitleZen Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNishant Mishr
PublisherNishant Mishr
Publication Year
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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