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अनु० १
शाङ्करंभाप्यार्थ
नायं दोपः, कथम् ? दर्श- समाधान-यह कोई दोपकी नादर्शनापेक्षत्वाहह्मण आप्त्य- है ? क्योंकि ब्रह्मकी प्राप्ति और
बात नहीं है; किस प्रकार नहीं . नाप्त्योः । परमार्थतो ब्रह्मरूप- | अप्राप्ति तो उसके साक्षात्कार और
| असाक्षात्कारको अपेक्षासे हैं । जिस स्यापि सतोऽस्य जीवस्य भृत- प्रकार [ दशम पुरुपके लिये ]
प्रकृत ( दशम) संख्याकी पूर्ति मात्राकृतवाह्यपरिच्छिन्नान्नमया- करनेवाला अपना-आप* सर्वथा द्यात्मदर्शिनस्तदासक्तचेतसः प्र
अव्यवहित होनेपर भी संख्या करने
योग्य बाह्य विषयोंमें आसक्तचित्त कृतसंख्यापूरणस्यात्मनोऽव्यव- रहनेके कारण वह अपने स्वरूपका
अभाव देखता है उसी प्रकार पञ्चहितस्यापि चाह्यसंख्येयविषया- | भूत तन्मात्राओंसे उत्पन्न हुए बाह्य सक्तचित्ततया स्वरूपाभावदर्शन
.परिच्छिन्न अन्नमय कोशादिमें आत्म
| भाव देखनेवाला यह जीव परमार्थतः वत्परमार्थब्रह्मस्वरूपाभावदर्शन- ! ब्रह्मखरूप होनेपर भी उनमें आसक्त
हो जाता है और अपने परमार्थ लक्षणयाविद्ययान्नमयादीन्बाह्या- | ब्रह्मखरूपका अभाव देखनारूप
अविद्यासे अन्नमय कोश आदि बाह्य ननात्मन आत्मत्वेन प्रतिपन्न- अनात्माओंको आत्मखरूपसे देखनेस्वादन्नमयाचनात्मभ्यो नान्यो
के कारण 'मैं अन्नमय आदि
अनात्माओंसे भिन्न नहीं हूँ' ऐसा ऽहमस्मीत्यभिमन्यते । एवमविद्य- अभिमान करने लगता है। इसी प्रकार
अपना आत्मा होनेपर भी अविद्यावश यात्मभूतमपि ब्रह्मानाप्तं स्यात् ।' ब्रह्म अप्राप्त ही है।
___* इस विषयमें यह दृष्टान्त प्रसिद्ध है कि एक बार दश मनुष्य यात्रा कर रहे थे । रास्तेमें एक नदी पड़ी । जब उसे पार कर वे उसके दूसरे तटपर पहुँचे तो यह जाननेके लिये कि हममेंसे कोई बह तो नहीं गया अपनेको गिनने लगे । उनमेंसे जो भी गिनना आरम्भ करता वह अपनेको छोड़कर शेष नौको ही गिनता । इस प्रकार एककी कमी रहनेके कारण वे यह समझकर कि हममें से एक आदमी नदीमें बह गया है खिन्न हो रहे थे। इतनेहीमें एक बुद्धिमान्