SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 62
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वचनकारोंका सामूहिक व्यक्तित्व और जीवन-परिचय किसी क्रांतिके समय होता है । बसवेश्वरने प्रभुदेव और चन्नवसवकी सहायता से कर्नाटकके धर्मवीरोंको संघटित किया । उनका कार्य इतना प्रभावशाली रहा है कि इस युग में भी जब हर वातको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाता है उनको वीर शैव संप्रदायका संस्थापक माना जाता है । वस्तुतः वीरशैव मत उनके जन्मसे पहले कई शतमानोंसे विद्यमान था । सिंगिराज पुराण, सव पुराण आदि पुराणों को देखने से ज्ञात होता है कि वे विज्जल राजाके प्रधान मंत्री थे । विज्जल राजाका काल शा० श० १०७६ से १०८८ था । ४६ बसवेश्वर मंत्री और दंडनायक थे, इसका उल्लेख केवल पुराणों में मिलता है । किंतु इस विषय में प्रवतक कोई शिला लेख नहीं मिला है । कर्नाटक के इतिहास में शिलालेखका श्राधार प्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्राधार होता है । बसवेश्वर के जीवन कालके एकाध शतक के वाद लिखा हुआ एक शिलालेख मिला है । उसमें बसवेश्वरके नामका प्रत्यन्त गौरवपूर्ण उल्लेख है । किंतु उससे भी उनके मंत्री होने की बात सिद्ध नहीं होती । संभवतः किसी शिला लेखमें उनके मंत्री होने की बात इसलिए न दी गई हो कि उन्होंने प्राध्यात्मिक क्षेत्रमें जो कार्य किया है वह उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है । उनके मंत्री होनेका उल्लेख सूर्यको चिराग दिखाने के समान था । कुछ भी हो यह एक वास्तविक सत्य है किसी शिलालेख में ऐसा उल्लेख नहीं है । अस्तु, वसवेश्वरका जन्म स्थान बागेवाडी है । वह बीजापुर जिले में पड़ता है | उनके पिताका नाम मादरस था और माताका नाम मादलांविका । वे शैव ब्राह्मणके कुलमें पैदा हुए थे । संभवतः उनका जन्म शा० श० १०५३ में हुत्रा हो । 1 जब इनके माता-पिताने इनके ग्राठवें साल में उपनयन अर्थात् जनेऊ की तैयारी की तो बालकने कहा, "इसकी कोई प्रावश्यकता नहीं", और ये तपश्चर्याके लिए चल दिये। वहांसे वह कूडल संगमपर गये, जहां कृष्णा और मलापहारीका संगम हुआ है । वहां पर श्री जातदेव मुनि रहते थे । वह महान तपस्वी थे । घोर वीरशैव थे । ये उन्हीं के पास रहे । जातदेव मुनिने इनको दीक्षा दी | ये वहां बीस-पच्चीस वर्ष रहे । साधना की। विद्याध्ययन किया । उन दिनों में उनकी बड़ी बहन नागलांविका भी बराबर उनके साथ रही, और वहीं उनकी सेवा सुश्रूषा करती थी । एक बार संगमेश्वर क्षेत्रमें कई विद्वान् ब्राह्मण आए थे । उन सबसे बसवेश्वरका चास्त्रार्थ हुआ। उस शास्त्रार्थ में बसवेश्वरको जीत हुई। सभी विद्वान् ब्राह्मण निरुत्तर हुए। इससे उस क्षेत्र में बसवेश्वरकी कीर्ति फैल गयी । उन दिनों कल्याण में विज्जलका राज्य था । उनका मंत्री वसुवदेव था । -
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy