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________________ वचन-साहित्य परिचय मादरस जब अपना राज्य त्यागकर श्री-शल गये तब अपने पिता गल्लरस गे उनकी भेंट हुई। राज्य त्याग कर जाते समय इनके साथ इनकी पत्नी और पुत्र भी थे। किंतु इन्होंने अपने पुत्रको कुछ दिन अपने नाम के पश्चात् घर लोटा दिया । वृद्ध पितामे भेंट होने पर उनः पिताने गाहा, "तू अभी अपूर्ण है । तुझे पूर्णत्व प्राप्त नहीं हुमा । पनास मानक बाद, वावे. श्वर कल्याण में स्थानापन्न होंगे। तू वहां जाकर उनके पास रह ।" इससे यह स्पष्ट होता है कि मल्लरा बसवेश्वर से पर्याप्त वृल थे। तमा वसवेश्वरके उदयसे पनाम साल पहले भी यह धर्म-जागृति विद्यमान थी। तत्पश्चात् ये अपने पिताकी प्रामानुसार यावर के साथ रहने लगे पौर, वसवेश्वरके ऐक्य के बाद कल्यारा छोड़कर अपने शिष्य शिवदेव और महानिंगरामके साथ कुछ दिन बिताकर लिंगपय हुए। इनके ८८ वचन पाजत्तक प्रमाणित हुए हैं। उनमें पांच साने गुद्ध नि: उनका अथं ही नहीं होता। इनके वचन अधिक नीति-प्रधान है। यह गरीर की अवहेलना नहीं करते। इनके वचनस्मरण गला । उन्होंने सपने बचनों में कहा है , "याहीं भी जानो ग्रन्यांना प्राश्रय नहीं टूटता । जंगल में जाने पर भी वृक्ष लतानोंका प्राश्रय लेना पड़ता है। इसलिए जो तुम मिलता है या सब परमात्माका दिया हुआ है ऐसा मानकर सब कुछ उसको अपंगा करने में ही कुशलता है।" ___ उन्होंने सर्वापरणका रहस्य समाया है। जैसा ही समयका महास्य भी कहा है । समत्व का महत्त्व कहते समय यह पाहते हैं, “तीन चौपाई सोचनेगर ही पढ़ा हुया एक चौथाई पचता है।" "जो श्रम-यम करता है, वही धनी होगा" "कमलरो कमलपर उड़नेवाले अमरको ही मकरंद मिल सकता है।" "यागा में तुच्छता है तो निस्पृहतामें महानता है," प्रादि वचन अत्यन्त सूक्ष्म, गुलभ तथा अर्थपूर्ण हैं । मल्ल रस और मादररा इन पितापुमने यह सिद्ध कर दिया है। अपने प्रात्म-वैभवके सामने राज्य वैभव व्यर्थ है। (७) 'बसवप्रिय गाडलसंगमदेव' यह हादप्पण्णको गुद्रिका है। उनके चरित्रका कोई अंश नहीं मिलता किंतु यह बसवेश्वरने पान ही रहते थे। जय श्री अल्लग प्रभु कल्याण में पाये, बसवेश्वर पूजामें बैठे थे। इसीने जाकर बसवेश्वरको अल्लम प्रभुके आने की बात कही और बसवेश्वरने उनीको अल्लमप्रभुती अगवानी के लिए भेजा था। इनके २२२ वनन प्रकाशित हुए हैं । इनके एक-दो वचनोंमें 'चन्नगल्लेयर तुम ही जानते हो !' 'चन्नमल्लेश्वर ही साक्षी है !" ऐसे पद मिलते हैं । इससे
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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