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________________ १८ वचन - साहित्य- परिचय नॅरिड मऍय नोडा । चन्नमल्लिकार्जुनय्या नीनॉलिद शररगंगे निस्सीम सुखवैया । t - अमृतक्क हसिवुटे ?= लक्के तृषयुंटे ? घन पुरुषंग विषयवंटे ? ε-- - 'विश्व दॉल्लगं नीने देवा । विश्वभरितनु नीने देवा । विश्वपतियुनोने देवा । विश्वातीत नीने देवा । १०- एनंतरंग नीवय्थ्य | १० एन्न बहिरंग नोवय्य । एनरिव नीवय्य । एन्न मरवु नीवय्य | एन्न भक्ति नीवय्य । एन्न युक्ति नीवय्य | एन्न ग्रालस्य नोवय्य । एन्न परवश नीवय्य | ऐसे कितने ही वचन गिनाये जा सकते हैं । ये वचन समाक्षरोंके पदलालित्य दिखाने के लिए पर्याप्त हैं । ग्रव इनमें से कुछ वचनों के पदोंका विचार करें। पहले वचनका पद लालित्य अपने श्राप स्पष्ट है । दूसरे वचनमें आने वाले शब्द मनसिन, कनसिन संशय, काडु काट, नोडा ग्रादि शब्दों, की समानता र प्रास काव्यात्मक हैं। तीसरे वचन में नीनॉलिदरे शब्दकी पुनरुक्ति, कॉरडु वरडु, कॉनरहुदय्या, हयनहृदय्या शब्दोंकी समानता, तथा तालबद्धता अपना पदलालित्य दिखाने के लिए पर्याप्त है। चौथे वचनके चारों चरणों में थाने वाला तुंवि शब्द, एक है । पहले तीन चरणों में वचन, नयन-मन आदि शब्द, चतुर्थ चरण में आनेवाले किवि, कीरुति आदि शब्द, तथा अंतिम चरण में श्रानेवाला तुंवि शब्द, इन शब्दों में ग्रानेवाला समाक्षरोंका लालित्य वचन की काव्यात्मकता दिखाने के लिए पर्याप्त है । साथ-साथ पहले चार चरणों में थाए हुए 'तुंवि' शब्दका अर्थ 'भरकर ' है तो अंतिम वार प्राये हुए 'तुंवि' शब्दका अर्थ 'भ्रमर' है । पाँचवें वचनमें ग्रानेवाले करि, धन, गिरि, किरि, ग्रादि शब्दों का साम्य, लालित्य, तुक एवं समान अर्थकी दृष्टिसे दिये गये दृष्टांत, अत्यन्त ग्राकर्षक और मार्मिक हैं । वैसे ही नौवां और दसवां वचन भी विश्व, नीने, देवा ग्रादि शब्दों के ८. व. सं. ३३२६. व. सं. २१० व. सं.
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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