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________________ षट्स्थल शास्त्र और वीर-शैव संप्रदाय विवेचन-अब तक वचन साहित्यके आधारभूत दर्शन, उसका साध्य, उस साध्यको प्राप्त करनेके साधन प्रादिके विषयमें विवेचन किया गया। इसमें अधिकतर पारिभाषिक शब्द वेदान्त, दर्शन, आदिके लिये गए हैं। संप्रदायकी भाषा अथवा परिभाषा नहीं आई। किंतु इस परिच्छेदमें पट्स्थल संप्रदाय विशेषके बारेमें आये वचनोंका संकलन किया गया है। अब तक वचनामृतमें आय हुए तत्वज्ञान, सत्य अहिंसादि नैतिक प्राचार, सर्पिण, ज्ञान, भक्ति, ध्यानदि साधन मार्गों का पुनः यहां विवेचन. करनेकी कोई आवश्यकता नहीं है । यहाँ पर, जिन वातोंसे इस संप्रदायको एक वैशिष्ट्य प्राप्त हुआ है उन्हीं बातोंका विचार किया गया है। __इस संप्रदायमें शिव ही सर्वोत्तम है । वही परात्पर दैवत है । शिवैक्य अथवा लिंगैक्य इस संप्रदायका सर्वोच्च ध्येय है। लिंगको शिवका प्रतीक माना जाता है, तथा जीवको अंग कहा जाता है। इससे शिवैक्य, अथवा शिव सारूप्यको लिंगांग संयोग, कहा जाता है । इस साधनामार्गको शरणमार्ग, शिवयोग, अथवा लिंगांगयोग भी कहा जाता है। इस साधनामार्गमें जीव शिवमें अथवा अंग लिंगमें, शिवके सब प्रकारके चलन-वलन में समरस होकर रहता है, इसलिए शिवैक्यको समरसैक्य भी कहते हैं। जीव शिवमें, अथवा अंग लिंगमें, . समरसैक्य होनेकी स्थितिमें परमानंद अनुभव करता है। इसे लिंगांग समरसक्य भी कहते हैं। सांप्रदायिक पद्धतिसे इस साध्यको प्राप्त करनेके लिए, आवश्यक साधन क्रम बतलानेसे पहले षट्स्थल सिद्धांतका बोध होना आवश्यक है। यही इस संप्रदायका वैशिष्ट्य है। इस संप्रदायमें साधनाकी छः अवस्थाएं मानी गई हैं और उनको छः भिन्न-भिन्न नाम दिए गये हैं • वे नाम हैं भक्तस्थल, महेश- - स्थल, प्रसादिस्थल, प्राणलिंगिस्थल, शरणस्थल और ऐक्यस्थल । इन सबमें ऐक्यस्थल सबसे ऊंचा है। वचनकारोंकी दृष्टिसे यही सिद्धावस्था है। इसे “वचन सिद्धावस्था" कह सकते हैं। साधनाकी इस स्थितिमें जीव और शिवका ऐक्य हो जाता है । इसलिए उनको ऐक्यस्थल कहते हैं। यहां जीवकी स्थिति संपूर्णतः नष्ट हो जाती है । वह शून्यमें विलीन हो जाता है, इसलिए इस स्थितिको शून्य संपादन कहते हैं। भारतीय दर्शनके अनुसार सारूप्य मुक्ति कह सकते हैं । वचनकारोंने इसे शिवैक्य, लिंगैक्य, निजैक्य आदि कहा है ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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