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________________ २०६ वचन साहित्य - परिचय पराया, वह कामी सा लगनेपर भी कामी नहीं होता, साधना न करनेपर भी साधक नहीं होता, वह निर्दोष है, निष्पाप है, सिद्धसोमनाथ लिगेय तुम्हारा शरण कार्यरत रहकर भी कर्मचक्रमें भ्रमित नहीं होता । (१५१) यदि आकाश ठोस हो जाए, तो स्वर्ग मृत्यु पाताल कहां रहेंगे ? बादलका सारा पानी निर्मल मुक्ता-मरिण वन जाय तो इन सप्त सागर में पानी कहांसे श्राए ? मानव सब शिवज्ञानी हो जाए तो यह विश्व कैसे चलेगा ? इसीलिए कूडलसंगमदेव के घर लाखोंमें एक भक्त योर करोड़ोंमें एक शिवशरण साक्षात्कारी होता है । टिप्पणी : - शिवज्ञानी = पूर्णज्ञानी । ( १५२ ) - स्वस्थान, सुस्थान, सुमन सिंहासनपर नित्य निष्पाप निरंजनका प्रकाश है । शिवयोगानुभव एकार्थ होकर गुहेश्वरा तुम्हारा शरण अनुपम सुखी बनकर रह गया । टिप्पणी :- - स्वस्थान, सुस्थान, सिंहासन - ब्रह्मरंध्र अथवा सहस्रार चक्र । शिवयोग = परमात्म योग । ( १५३) भरा हुआ नहीं छलकता, विश्वस्थ कभी संशय नहीं करता, अभिन्न प्रेमी कभी खिसक नहीं जाता, अच्छी तरह जाना हुआ कभी भूल नहीं जाता; चन्नमल्लिकार्जु नैया तुझसे अभिन्न हुए शरणको सदा सुखहा सुख है देख
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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