SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपसंहार मानव-कुल, अपना सुख-दुःख, हर्ष-शोक, काम-क्रोध, पाप-पुण्य, ईर्ष्या-द्वेप आदि विकारोंको भूल जाएं ! देवके दिव्य संगीतकी धुनमें समग्र मानव-कुलका दिव्यीकरण हो । वह परम सत्य अपने संगीतके वाद्योंमें उतर आये । हम सबका स्वर विश्वात्माकी वीणाकी टंकार हो । सुनो ! विश्वात्माके दिव्य संगीतका स्वर सुनो ! वह तुम्हें पुकार रहा है । तुम उस महान संगीतकारके साथी हो । अपनाअपना वाद्य उस दिव्य संगीतके स्वर में मिला कर गा उठो। और दिव्य बन . जायो ! भव्य बन जायो !! अमर बन जायो !!! ___ यह है कन्नड़ वचन साहित्यका दिव्य संदेश । यह है शिव-शरगोंकी अमर युगवाणी । यह उस समय में भी युगवाणी थी, आज भी युगवाणी है और हजार साल बाद भी युगवाणी रहेगी । जब तक विश्व में एक भी मानव अपूर्ण रहेगा, उसका दिव्यीकरण होना बाकी रहेगा, विश्वके किसी कोने में दुःखकी किंचित्भा छाया होगी तब तक शिवशरणोंकी यह पुकार युगवाणी बनी रहेगी। ऐसी है यह नित्य नूतन अमर युगवाणी ।
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy