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________________ १५० वचन-साहित्य-परिचय जाने नहीं देता। अपना प्रत्येक क्षण वह ईश्वरकी सेवामें लगाता है। ऐसे व्यक्तियों में जागृति, सतत कर्म तथा शांत भक्तिका साथ रहता है।" रामदास महाराजका आदर्श पुरुष व्यवहारी, दक्ष पुरुष है । उनके अनुसार ऐसे पुरुष ही लोकहितकारी होते हैं। श्रीतुलसीदासने भी रामचरित मानसमें रामको अादर्श पुरुष माना है। उनको मर्यादा पुरुषोत्तम माना है । रामके रूपमें तुलसीदास जीने मानवजीवनका संदरतम आदर्श प्रस्तुत किया है। किंतु तुलसीदासजीने आदर्श पुरुषका कलात्मक पक्ष सामने रखा है और समर्थ रामदासने शास्त्रीय पक्ष । उन्होंने जैसे गीतामें स्थित प्रज्ञके लक्षण बताये हैं वैसे आदर्श पुरुषके लक्षण कहे हैं । वैसे ही वचनकारोंने साक्षात्कारीके लक्षण कहे हैं। सत्यका साक्षात्कार किया हुआ अनुभवी ही उनका आदर्श पुरुष है । __ वचनकारों के प्रादर्श पुरुषके लिए आवश्यक गुण-शील तथा कर्मके विषय में वचनामृतके सोलहवें और सत्रहवें अध्याय में पर्याप्त वचन देखनेको मिलेंगे। साधक किसी भी मार्गकी साधना क्यों न करे, उसके लिए सत्य, अहिंसा, अस्तेय, दया, क्षमा, शांति, अदभत्व, धैर्य, सहनशीलता, ब्रह्मचर्य, इंद्रिय-निग्रह आदि गुणोंकी आवश्यकता है। उपनिषद् कारोंसे लेकर महात्मा गांधी तक प्रत्येक साधकने इन गुणोंकी आवश्यकताका प्रतिपादन किया है। भारतके प्राचीनतम धर्म-साहित्य वेदोंमें भी "सत्यंवद" कहा गया है । और आज दस हजार . सालके वाद भी जन-जीवनके सामूहिक विकासके साधकोंको 'सच वोलो' कहना पड़ता है । यह सब लोग कहते हैं, असत्य बोलना पाप है । झूठ ही सब प्रकारके पापकी जड़ है । हम अपने बच्चोंको इसलिए दंड भी देते हैं. कि तुमने झूठ कहा ! किंतु संतोंको बार-बार कहना पड़ता हैं, 'सत्य बोलो !!' मानो यह संत और समाजमें होड़-सी लगी है । समाज झूठ बोलनेसे नहीं अपाता और संत "सच बोलो" कहनेसे नहीं अघाते !! संत कभी हारनेवाले नहीं हैं। वह कभी निराश नहीं होते। संतोंके अनंत चमत्कारों पर विश्वास करनेवाले भारतीय इस पर भी विश्वास करेंगे कि एक दिन ऐसा भी आयेगा कि संतोंको सत्य बोलो ऐसा कहनेकी आवश्यकता नहीं रहेगी ; और उसी दिन समग्र विश्व पर दिव्य शक्तिका अवतरण होगा। यह विश्व अमृतलोक हो जाएगा। ऊपर जो गुण कहे गये हैं वह आदर्श पुरुषके श्वास-निश्वास हैं। विना इन गुणोंके आदर्श पुरुषकी कल्पना भी असंभव है । वचनकारोंकी तरह उपनिषदोंने भी सच बोलो, धर्मका आचरण करो, अतिथि-अभ्यागतोंको भगवानका रूप मानकर उनका स्वागत करो, पवित्र कार्य करो आदि वातें कही हैं। भारतकी प्रत्येक भाषाके संतोंने यह बातें कही हैं । ईसा मसीहने कहा है, "यदि हमने सत्यकी शरण ली, सत्य हमें अपना लेगा।" हमारे धर्मशास्त्रोंमें भी कहा गया है, "जो
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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