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________________ वचन साहित्यमें नीति और धर्म ____१२६ जोशका निर्माण हुया । समाजके लोगोंको अपने नेताओं पर विश्वास जमा । किसी भी समाजमें स्त्री-पुरुप विषयक संबंध एक जटिलतम समस्या है। स्त्रीपुरुपके संबंधके विषयमें वचनकारोंने अत्यंत मननीय विचार व्यक्त किये हैं। वह स्त्रियोंको पुरुपोंके समान मानते हैं। वह स्त्रीको जगदंबाका रूप मानते हैं । इस तरह वह समाजमें नयी भावनाको जन्म देते हैं । उस समयमें समाजमें गिरा हुआ स्त्रियोंका स्थान-मान ऊंचा उठानेमें उन्होंने महानतम प्रयास किया है। भारतीय इतिहासमें हम अक्क महादेवी जैसी महान् स्त्री रत्न उसी कालमें देख सकते हैं । वचनकारों के सामाजिक विचार भी समाज तथा व्यक्तिकी ऊपरकी पोशाकको फाड़ करके अंदरकी प्रात्माको देखना सिखाते हैं । उन्होंने कहा 'अरे ! हम सब एक ही ईश्वरकी संतान हैं। इसलिए हमारा बंधुत्व स्वाभाविक है । भाई-भाईमें कौन ऊंचा और कौन नीचा है ? अपरका शरीर स्त्रीका हो या पुरुपका । ब्राह्मणका हो या चांडालका । उनके मन, प्राण तथा आत्मामें भी यह भिन्नता है क्या ?' फिर वे जाति-पांतिके समर्थकोंको ललकार कर चुनौती देते हैं 'अरे ! यात्माका कुल कौन-सा है, यह बतायो रे !!' एक हजार साल पहले से जो उन्होंने चुनौती दे रखी है, उसको आज भी किसीने स्वीकार नहीं किया है। समग्र मानव कुलको एकताके सूत्र में पिरोनेका वचनकारोंका यह प्रयास स्तुत्य है । अाज भी समाजकी उच्च-नीच जातियां, उनमें पाया जानेवाला विद्वेष, फूट, यह सब भारतीय समाजको सड़ा रहे हैं। प्राजके नेता इसके विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। फिर भी आजके वैज्ञानिक ढंगसे काम करनेवाले हमारे नेताओंकी आवाज में, उनकी पुकारमें वह दर्द नहीं दीखता। वह टीस नहीं दीखती। उनकी बातमें वह शक्ति नहीं दीखती। उनकी पुकार सुननेवालेके हृदयको नहीं चुभती । वहां कोई विशेष हलचल नहीं पैदा करती। कहते हैं, मानव-जीवनका रहस्य उसके मस्तिष्कमें नहीं किंतु उसके हृदयमें हैं । आपसकी फूटसे बार-बार अपनी स्वतंत्रताको खोकर निर्जीव बने हुए समाजको एकताके सूत्रमें पिरोनेके लिए 'अरे ! हम सब एक ही ईश्वरकी संतान हैं । भाई-भाई हैं । भाइयोंमें ऊंचनीच कैसा ? भाइयोंमें संघर्ष कैसा ?' यह बंधुत्वका भाव अमृतमय है। कहते हैं, "सच्चा और उच्च कोटिका साहित्य समग्न मानव-समाजके हृदयके तार एक-सा झंकृत करता है ।" एक हजार साल पहले लिखे गये इस साहित्यका यह आह्वान है, 'हम एक ही ईश्वरके पुत्र हैं। भाई-भाई हैं । आनो ! गले मिलें। भाई-भाईकी तरह प्रेमसे मिलें ।" यह प्रेम भरा संदेश, जाति, कुल, भाषा यादि. सभी दीवारोंको तोड़कर विश्व-बंधुत्वके निरिणके लिए पर्याप्त है । समग्र मानवकुलको बंधुत्वके सूत्र में पिरोनेके लिए आज भी उतनाही शक्तिशाली है जितना एक हजार साल पहले था। आज भी वह उतना ही नया है जितना उन दिनोंमें
SR No.034103
Book TitleSantoka Vachnamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRangnath Ramchandra Diwakar
PublisherSasta Sahitya Mandal
Publication Year1962
Total Pages319
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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