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________________ ૮૨૮ • अर्चयस्व हवीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पापुराण H श्रीमद्भगवद्गीताके नवें और दसवें अध्यायोंका माहात्म्य ___महादेवजी कहते हैं-पार्वती ! अब मैं आदर- मैं पशु-योनिमें पड़ा हूँ, तो भी मुझे अपने पूर्वजन्मोंका पूर्वक नवम अध्यायके माहात्म्यका वर्णन करूँगा, तुम स्मरण बना हुआ है। ब्रह्मन् ! यदि आपको सुननेकी स्थिर होकर सुनो । नर्मदाके तटपर माहिष्मती नामकी एक उत्कण्ठा हो, तो मैं एक और भी आश्चर्यकी बात बताता नगरी है। वहाँ माधव नामके एक ब्राह्मण रहते थे, जो हूँ। कुरुक्षेत्र नामका एक नगर है, जो मोक्ष प्रदान वेद-वेदाङ्गोंके तत्त्वज्ञ और समय-समयपर आनेवाले करनेवाला है। वहाँ चन्द्रशर्मा नामक एक सूर्यवंशी राजा अतिथियोंके प्रेमी थे। उन्होंने विद्याके द्वारा बहुत धन राज्य करते थे। एक समय जब कि सूर्यग्रहण लगा था, कमाकर एक महान् यज्ञका अनुष्ठान आरम्भ किया। टस राजाने बड़ी श्रद्धाके साथ कालपुरुषका दान करनेकी यज्ञमें बलि देनेके लिये एक बकरा मैंगाया गया। जब तैयारी की। उन्होंने वेद-वेदाङ्गोंके पारगामी एक विद्वान् उसके शरीरकी पूजा हो गयी, तब सबको आश्चर्यमे ब्राह्मणको बुलवाया और पुरोहितके साथ वे तीर्थके डालते हुए उस बकरेने हंसकर उच्च स्वरसे कहा- पावन जलसे स्नान करनेको चले। तीर्थके पास पहुँचकर 'ब्रह्मन् ! इन बहुत-से यज्ञोद्वारा क्या लाभ है। इनका राजाने स्रान किया और दो वस्त्र धारण किये। फिर फल तो नष्ट हो जानेवाला है तथा ये जन्म, जरा और पवित्र एवं प्रसन्नचित्त होकर उन्होंने श्वेत चन्दन लगाया मृत्युके भी कारण है। यह सब करनेपर भी मेरी जो और बगलमें खड़े हुए पुरोहितका हाथ पकड़कर वर्तमान दशा है, इसे देख लो।' बकरेके इस अत्यन्त तत्कालोचित मनुष्योंसे घिरे हुए अपने स्थानपर लौट कौतूहलजनक वचनको सुनकर यज्ञमण्डपमें रहनेवाले आये। आनेपर राजाने यथोचित विधिसे भक्तिपूर्वक सभी लोग बहुत ही विस्मित हुए। तब वे यजमान ब्राह्मणको कालपुरुषका दान किया। ब्राह्मण हाथ जोड़ अपलक नेत्रोंसे देखते हुए बकरेको तब कालपुरुषका हृदय चीरकर उसमेंसे एक प्रणाम करके श्रद्धा और आदरके साथ पूछने लगे। पापात्मा चाण्डाल प्रकट हुआ। फिर थोड़ी देरके बाद ब्राह्मण बोले-आप किस जातिके थे? निन्दा भी चाण्डालीका रूप धारण करके कालपुरुषके आपका स्वभाव और आचरण कैसा था? तथा किस शरीरसे निकली और ब्राह्मणके पास आ गयी। इस कर्मसे आपको बकरेकी योनि प्राप्त हुई ? यह सब प्रकार चाण्डालोंकी वह जोड़ी आँखें लाल किये निकली मुझे बताइये। __ और ब्राह्मणके शरीरमें हठात् प्रवेश करने लगी। ब्राह्मण बकरा बोला-ब्रह्मन् ! मैं पूर्वजन्ममें ब्राह्मणोंके मन-ही-मन गीताके नवम अध्यायका जप करते थे और अत्यन्त निर्मल कुलमें उत्पन्न हुआ था। समस्त यज्ञोंका राजा चुपचाप यह सब कौतुक देखने लगे। ब्राह्मणके अनुष्ठान करनेवाला और वेद-विद्यामें प्रवीण था। एक अन्तःकरणमें भगवान् गोविन्द शयन करते थे। वे दिन मेरी स्त्रीने भगवती दुर्गाको भक्तिसे विनम्र होकर उन्हींका ध्यान करने लगे। ब्राह्मणने [जब गीताके नवम अपने बालकके रोगकी शान्तिके लिये बलि देनेके अध्यायका जप करते हुए अपने आश्रयभूत भगवान्का निमित्त मुझसे एक बकरा माँगा। तत्पश्चात् जब ध्यान किया, उस समय गीताके अक्षरोंसे प्रकट हुए चण्डिकाके मन्दिरमें वह बकरा मारा जाने लगा, उस विष्णुदूतोंद्वारा पीड़ित होकर वे दोनों चाण्डाल भाग चले। समय उसकी माताने मुझे शाप दिया-'ओ ब्राह्मणोंमें उनका उद्योग निष्फल हो गया। इस प्रकार इस घटनाको नौच, पापी ! तू मेरे बच्चेका वध करना चाहता है; प्रत्यक्ष देखकर राजाके नेत्र आश्चर्यसे चकित हो उठे। इसलिये तू भी बकरेकी योनिमें जन्म लेगा। द्विजश्रेष्ठ ! उन्होंने ब्राह्मणसे पूछा-'विप्रवर ! इस महाभयङ्कर तब कालवश मृत्युको प्राप्त होकर मैं बकरा हुआ । यद्यपि आपत्तिको आपने कैसे पार किया? आप किस मन्त्रका
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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