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________________ ७३४ . अर्थयस्व वीकेशं यदीच्छसि परं पदम् . [ संक्षिप्त पापुराण सब पापोंकी शुद्धिका साधन है। श्रीविष्णुके 'अपामार्जन और जपसे भक्ति प्राप्त करते हैं। पार्वती ! जो इसका स्तोत्र'से आई'-शुष्क', लघु-स्थूल (छोटे-बड़े) एवं पाठ करता है, उसे सामवेदका फल होता है; उसकी ब्रह्महत्या आदि जितने भी पाप हैं, वे सब उसी प्रकार सारी पाप-राशि तत्काल नष्ट हो जाती है। देवि ! ऐसा नष्ट हो जाते है जैसे सूर्यके दर्शनसे अन्धकार दूर हो जानकर एकाग्रचित्तसे इस स्तोत्रका पाठ करना चाहिये। जाता है। जिस प्रकार सिंहके भयसे छोटे मृग भागते हैं, इससे पुत्रकी प्राप्ति होती है और घरमें निश्चय ही लक्ष्मी उसी प्रकार इस स्तोत्रसे सारे रोग और दोष नष्ट हो जाते परिपूर्ण हो जाती हैं। जो वैष्णव इस स्तोत्रको भोजपत्रपर हैं। इसके श्रवणमात्रसे ही प्रह, भूत और पिशाच लिखकर सदा धारण किये रहता है, वह इस लोकमें आदिका नाश हो जाता है। लोभी पुरुष धन कमानेके सुख भोगकर अन्तमें श्रीविष्णुके परमपदको प्राप्त होता लिये कभी इसका उपयोग न करें। अपामार्जन स्तोत्रका है। जो इसका एक-एक श्लोक पढ़कर भगवान्को उपयोग करके किसीसे कुछ भी नहीं लेना चाहिये, इसीमें तुलसीदल समर्पित करता है, वह तुलसीसे पूजन अपना हित है। आदि, मध्य और अन्तका ज्ञान करनेपर सम्पूर्ण तीर्थोक सेवनका फल पा लेता है। यह रखनेवाले शान्तचित्त श्रीविष्णुभक्तोको निःस्वार्थभावसे भगवान् विष्णुका स्तोत्र परम उत्तम और मोक्ष प्रदान इस स्तोत्रका प्रयोग करना उचित है; अन्यथा यह करनेवाला है। सम्पूर्ण पृथ्वीका दान करनेसे मनुष्य सिद्धिदायक नहीं होता। भगवान् विष्णुका जो श्रीविष्णुलोकमें जाता है; किन्तु जो ऐसा करनेमें असमर्थ अपामार्जन नामक स्तोत्र है, यह मनुष्योंके लिये अनुपम हो, वह श्रीविष्णुलोककी प्राप्तिके लिये विशेषरूपसे इस सिद्धि है, रक्षाका परम साधन है और सर्वोत्तम ओषधि स्तोत्रका जप करे। यह रोग और ग्रहोंसे पीड़ित है। पूर्वकालमें ब्रह्माजीने अपने पुत्र पुलस्त्य मुनिको बालकोंके दुःखको शान्ति करनेवाला है। इसके इसका उपदेश किया था; फिर पुलस्त्य मुनिने दालभ्यको पाठमात्रसे भूत, ग्रह और विष नष्ट हो जाते हैं। जो सुनाया। दाल्भ्यने समस्त प्राणियोंका हित करनेके लिये ब्राह्मण कण्ठमें तुलसीको माला पहनकर इस स्तोत्रका इसे लोकमें प्रकाशित किया; तबसे श्रीविष्णुका यह पाठ करता है, उसे वैष्णव जानना चाहिये; वह निश्चय ही अपामार्जन स्तोत्र तीनों लोकोंमें व्याप्त हो गया। यह सब श्रीविष्णुधाममें जाता है। इस लोकका परित्याग करनेपर प्रसङ्ग भक्तिपूर्वक श्रवण करनेसे मनुष्य अपने रोग और उसे श्रीविष्णुधामकी प्राप्ति होती है। जो मोह-मायासे दूर दोषोंका नाश करता है। हो दम्भ और तृष्णाका त्याग करके इस दिव्य स्तोत्रका 'अपामार्जन' नामक स्तोत्र परम अद्भुत और दिव्य पाठ करता है, वह परम मोक्षको प्राप्त होता है। इस है। मनुष्यको चाहिये कि पुत्र, काम और अर्थकी भूमण्डलमें जो ब्राह्मण भगवान् विष्णुके भक्त हैं, वे धन्य सिद्धिके लिये इसका विशेषरूपसे पाठ करे । जो द्विज माने गये हैं। उन्होंने कुलसहित अपने आत्माका उद्धार एक या दो समय बराबर इसका पाठ करते हैं, उनकी कर लिया-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। जिन्होंने आयु, लक्ष्मी और बलकी दिन-दिन वृद्धि होती है। भगवान् नारायणकी शरण ग्रहण कर ली है, संसारमें वे ब्राह्मण विद्या, क्षत्रिय राज्य, वैश्य धन-सम्पत्ति और शूद्र परम धन्य हैं। उनकी सदा भक्ति करनी चाहिये, क्योंकि भक्ति प्राप्त करता है। दूसरे लोग भी इसके पाठ, श्रवण वे भागवत (भगवद्भक्त) पुरुष हैं। १-स्वेच्छासे किये हुए पाप । २-अनिच्छासे किये हुए पाप ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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