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________________ सृष्टिखण्ड] . भीष्म और पुलस्त्यका संवाद-सृष्टि-क्रमका वर्णन तथा भगवान् विष्णुकी महिमा . . . . . शत्रुओंको दमन करनेमें समर्थ हो। साथ ही धर्मज्ञ, आकाशको सब ओरसे आच्छादित किया। [तब शब्दकृतज्ञ, दयालु, मधुरभाषी, सम्मानके योग्य पुरुषोंको तन्मात्रारूप आकाशने विकृत होकर स्पर्श-तन्मात्राकी सम्मान देनेवाले, विद्वान्, ब्राह्मणभक्त तथा साधुओंपर रचना की।] उससे अत्यन्त बलवान् वायुका प्राकट्य स्नेह रखनेवाले हो । वत्स ! तुम प्रणामपूर्वक मेरी शरण हुआ, जिसका गुण स्पर्श माना गया है। तदनन्तर आये हो; अतः मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहो, आकाशसे आच्छादित होनेपर वायु-तत्त्वमें विकार आया पूछो; मैं तुम्हारे प्रत्येक प्रश्रका उत्तर दूंगा।' और उसने रूप-तन्मात्राकी सृष्टि की। वह वायुसे भीष्मजीने कहा-भगवन् ! पूर्वकालमें भगवान् अग्निके रूपमें प्रकट हुई। रूप उसका गुण कहलाता है। ब्रह्माजीने किस स्थानपर रहकर देवताओं आदिकी सृष्टि तत्पश्चात् स्पर्श-तन्मात्रावाले वायुने रूप-तन्मात्रावाले की थी, यह मुझे बताइये। उन महात्माने कैसे ऋषियों तेजको सब ओरसे आवृत किया। इससे अग्नि-तत्त्वने तथा देवताओंको उत्पन्न किया ? कैसे पृथ्वी बनायी? विकारको प्राप्त होकर रस-तन्मात्राको उत्पन्न किया। किस तरह आकाशकी रचना की और किस प्रकार इन उससे जलकी उत्पत्ति हुई, जिसका गुण रस माना गया समुद्रोंको प्रकट किया? भयङ्कर पर्वत, वन और नगर है। फिर रूप-तन्मात्रावाले तेजने रस-तन्मात्रारूप जलकैसे बनाये? मुनियों, प्रजापतियों, श्रेष्ठ सप्तर्षियों और तत्त्वको सब ओरसे आच्छादित किया। इससे विकृत भिन्न-भिन्न वर्गोंको, वायुको, गन्धों, यक्षों, राक्षसों, होकर जलतत्त्वने गन्ध-तन्मात्राकी सृष्टि की, जिससे यह तीर्थों, नदियों, सूर्यादि ग्रहों तथा तारोंको भगवान् ब्रह्माने पृथ्वी उत्पन्न हुई। पृथ्वीका गुण गन्ध माना गया है। किस तरह उत्पन्न किया? इन सब बातोंका वर्णन इन्द्रियाँ तैजस कहलाती हैं [क्योंकि वे राजस अहङ्कारसे कीजिये। प्रकट हुई है। इन्द्रियोंके अधिष्ठाता दस देवता पुलस्त्यजीने कहा-पुरुषश्रेष्ठ ! भगवान् ब्रह्मा वैकारिक कहे गये हैं [क्योंकि उनकी उत्पत्ति सात्त्विक साक्षात् परमात्मा हैं। वे परसे भी पर तथा अत्यन्त श्रेष्ठ अहङ्कारसे हुई है] । इस प्रकार इन्द्रियोंके अधिष्ठाता दस हैं। उनमें रूप और वर्ण आदिका अभाव है। वे यद्यपि देवता और ग्यारहवाँ मन-ये वैकारिक माने गये हैं। सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि ब्रह्मरूपसे इस विश्वकी उत्पत्ति त्वचा, चक्षु, नासिका, जिह्वा और श्रोत्र-ये पाँच करनेके कारण विद्वानोंके द्वारा ब्रह्मा कहलाते हैं। उन्होंने इन्द्रियाँ शब्दादि विषयोंका अनुभव करानेके साधन हैं। पूर्वकालमें जिस प्रकार सृष्टि-रचना की, वह सब मैं बता अतः इन पाँचोंको बुद्धियुक्त अर्थात् ज्ञानेन्द्रिय कहते हैं। रहा हूँ। सुनो, सृष्टिके प्रारम्भकालमें जब जगत्के स्वामी गुदा, उपस्थ, हाथ, पैर और वाक्-ये क्रमशः मलब्रह्माजी कमलके आसनसे उठे, तब सबसे पहले उन्होंने त्याग, मैथुनजनित सुख, शिल्प-निर्माण (हस्तकौशल), महत्तत्त्वको प्रकट किया; फिर महत्तत्त्वसे वैकारिक गमन और शब्दोच्चारण-इन कर्मोमें सहायक हैं। (सात्त्विक), तैजस (राजस) तथा भूतादिरूप तामस- इसलिये इन्हें कर्मेन्द्रिय माना गया है। तीन प्रकारका अहङ्कार उत्पन्न हुआ, जो कर्मेन्द्रियोंसहित वीर ! आकाश, वायु, तेज, जल और पृथ्वी-ये पाँचों ज्ञानेन्द्रियों तथा पशभूतोंका कारण है। पृथ्वी, जल, क्रमशः शब्दादि उत्तरोत्तर गुणोंसे युक्त हैं अर्थात तेज, वायु और आकाश-ये पाँच भूत हैं। इनमेंसे आकाशका गुण शब्द, वायुके गुण शब्द और स्पर्श; एक-एकके स्वरूपका क्रमशः वर्णन करता हूँ। [भूतादि तेजके गुण शब्द, स्पर्श और रूप; जलके शब्द, स्पर्श, नामक तामस अहङ्कारने विकृत होकर शब्द-तन्मात्राको रूप और रस तथा पृथ्वीके शब्द, स्पर्श, रूप, रस एवं उत्पन्न किया, उससे शब्द गुणवाले आकाशका प्रादुर्भाव गन्ध-ये सभी गुण है। उक्त पाँचों भूत शान्त, घोर और हुआ।] भूतादि (तामस अहङ्कार) ने शब्द-तन्मात्रारूप मूढ़ हैं* । अर्थात् सुख, दुःख और मोहसे युक्त हैं। अतः • एक-दूसरेसे मिलनेपर सभी भूत शन्त, घोर और मूढ़ प्रतीत होते हैं। पृथक्-पृथक् देखनेपर तो पृथ्वी और जल शान्त है, तेज और वायु पोर है तथा आकाश मूढ़ है।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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