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________________ पातालखण्ड] • शत्रुघ्न आदिका घोड़ेसहित आरण्यक मुनिके आश्रमपर जाना . ४८७ वेदों और इतिहासोंका यह स्पष्ट सिद्धान्त है कि राम- श्रुतियाँ भी जिनके चरणकमलोंकी रजको सदा ही ढूँढ़ा नामका जो स्मरण किया जाता है, वह पापोंसे उद्धार करती हैं, उन्हीं भगवान्ने आज मेरे चरणोंका जल पीकर करनेवाला है। श्रीरघुनाथजी! ब्रह्महत्या-जैसे पाप भी अपनेको पवित्र माना है।' तभीतक गर्जना करते हैं, जबतक आपके नामोंका ऐसा कहते-कहते उनका ब्रह्मरन्ध फूट गया तथा स्पष्टरूपसे उच्चारण नहीं किया जाता । महाराज ! आपके उससे जो तेज निकला वह श्रीरघुनाथजीमें समा गया। नामोंकी गर्जना सुनकर महापातकरूपी गजराज कहीं इस प्रकार सरयूके तटवर्ती यज्ञ-मण्डपमें सब लोगोंके छिपनेके लिये स्थान ढूँढ़ते हुए भाग खड़े होते हैं।* देखते-देखते आरण्यक मुनिको सायुज्यमुक्ति प्राप्त हुई, श्रीराम ! आपकी कथा सुनकर सब लोग पवित्र हो जो योगियोंके लिये भी दुर्लभ है। उस समय आकाशमें जायेंगे। पूर्वकालमें जब कि सत्ययुग चल रहा था, मैंने तूर्य और वीणा आदि बाजे बजने लगे। भगवान्के आगे गङ्गातीरपर निवास करनेवाले पुराणवेत्ता ऋषियोंके फूलोंकी वर्षा हुई। दर्शकोंके लिये यह विचित्र एवं मुखसे यह बात सुनी थी-'महान् पाप करनेके कारण अद्भुत घटना थी। मुनियोंने भी यह दृश्य देखकर कातर हृदयवाले पुरुषोंको तभीतक पापका भय बना मुनीश्वर आरण्यककी प्रशंसा करते हुए कहा-'ये रहता है जबतक वे अपनी जिह्वासे परम मनोहर मुनिश्रेष्ठ कृतार्थ हो गये! क्योंकि श्रीरघुनाथजीके राम-नामका उच्चारण नहीं करते। अतः स्वरूपमें मिल गये हैं।' श्रीरामचन्द्रजी ! इस समय मैं धन्य हो गया। आपके दर्शनसे मेरे संसार-बन्धनका नाश सुलभ हो गया।' मुनिके ऐसा कहनेपर श्रीरघुनाथजीने उनका पूजन किया। उस समय सभी महर्षि उन्हें साधुवाद देने लगे। इसी बीच में वहाँ जो अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना घटी, उसे मैं बतला रहा हूँ। मुनिश्रेष्ठ वात्स्यायन ! तुम श्रीरामके भजनमें तत्पर रहनेवाले हो; मेरी बातोंको ध्यान देकर सुनो। आरण्यक मुनिको ध्यानमें श्रीरघुनाथजीका जैसा स्वरूप दिखायी देता था; उसी रूपमें महाराज श्रीरामचन्द्रजीको प्रत्यक्ष देखकर उन्हें अत्यन्त हर्ष हुआ। वे वहाँ बैठे हुए महर्षियोंसे बोले-'मुनीश्वरो ! आपलोग मेरे मनोहर वचन सुनें। भला, इस भूमण्डलमें मेरे-जैसा सौभाग्यशाली मनुष्य कौन होगा ? श्रीरामचन्द्रजीने मुझे नमस्कार करके अपने श्रीमुखसे मेरा स्वागत एवं कुशल-समाचार पूछा है। अतः आज मेरी समानता करनेवाला न कोई है न हुआ है और न होगा। . EURAEDS * स्वनामस्मरणान्मूढः सर्वशास्त्रविवर्जितः । सर्वपापाब्धिमुत्तीर्य स गच्छेत्परमं पदम्।। सर्ववेदेतिहासानां सारार्थोऽयमिति स्फुटम् । यद्रामनामस्मरण क्रियते पापतारकम् ॥ तावद्गन्ति पापानि ब्रह्महत्यासमानि च।न यावत्योच्यते नाम रामचन्द्र तव स्फुटम्॥ त्वन्नामगर्जनं श्रुत्वा महापातककुञ्जराः । पलायन्ते महाराज कुत्रचिरस्थानलिप्सया ॥ (३७ । ५०-५३) तावत्पापभियः पुंसां कातराणां सुपापिनाम् । यावत्र बदते वाचा रामनाम मनोहरम्॥ (३७। ५६)
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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