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________________ पातालखण्ड] • राजा सुबाहुका भाई और पुत्रोसहित युद्धमें आना तथा सेनाका क्रौञ्च-व्यूहनिर्माण + ४६३ ................ राजकुमार दमनके छोड़े हुए सभी बाण अग्निकी अब हवा कहीं भी नहीं जा पाती थी। यह देख ज्वालाओंमें झुलसकर सब ओरसे नष्ट हो गये। अपनी पुष्कलने अपने धनुषपर वज्रास्त्रका प्रयोग किया। तब सेना दग्ध होती देख दमन क्रोधसे भर गया। वह सभी क्ब्रके आघातसे वे सभी पर्वत क्षणभरमें तिलके समान अस्त्र-शस्त्रोंका विद्वान् था; इसलिये उसने वह आग टुकड़े-टुकड़े हो गये। साथ ही वह वज्र उच्चस्वरसे बुझानेके लिये वरुणास्त्र हाथमें लिया और शत्रुपर छोड़ गर्जना करता हुआ राजकुमार दमनकी छातीपर बड़े दिया। उसके छोड़े हुए वरुणास्त्रने रथ और घोड़े वेगसे गिरा। छातीके बिंध जानेके कारण राजकुमारको आदिसे भरी हुई पुष्कलकी सेनाको जलसे आप्लावित गहरी चोट पहुंची, इससे उस बलवान् वीरको बड़ी कर दिया। शत्रुओंके रथ और हाथी पानीमें डूबते व्यथा हुई। उसका हृदय व्याकुल हो उठा और वह दिखायी देने लगे तथा अपने पक्षके योद्धाओंको शान्ति मूर्च्छित हो गया। दमनका सारथि युद्धनीतिमें निपुण मिली। पुष्कलने देखा, मेरी सेना जलराशिसे पीड़ित था। वह राजकुमारको मूर्च्छित देखकर उसे रणभूमिसे होकर काँपती, क्षुब्ध होती और नष्ट होती जा रही है एक कोस दूर हटा ले गया। फिर तो उसके योद्धा तथा मेरा आग्नेयास्त्र शत्रुके वरुणास्त्रसे शान्त हो गया अदृश्य हो गये-इधर-उधर भाग खड़े हुए और है। तब अत्यन्त क्रोधके कारण उसकी आँखें लाल हो राजधानीमें जाकर उन्होंने राजकुमारके मूर्छित होनेका गयीं और उसने वायव्यास्त्रसे अभिमन्त्रित करके एक समाचार कह सुनाया। पुष्कल धर्मके ज्ञाता थे; उन्होंने बहुत बड़ा बाण अपने धनुषपर रखा। तदनन्तर संग्राम-भूमिमें इस प्रकार विजय पाकर श्रीरघुनाथजीके वायव्यास्त्रकी प्रेरणासे बड़े जोरकी हवा उठी और उसने वचनोंका स्मरण करते हुए फिर किसीपर प्रहार नहीं अपने वेगसे वहाँ घिरी हुई मेघोंकी घटाको छिन्न-भिन्न किया। तदनन्तर दुन्दुभि बज उठी, जोर-जोरसे जयकर दिया। राजकुमार दमनने अपने सैनिकोंको वायुसे जयकार होने लगा। सब ओरसे साधुवादके मनोहर पराजित होते देख अपने धनुषपर पर्वतास्त्रका संधान वचन सुनायी देने लगे। पुष्कलको विजयी देखकर किया। फिर तो शत्रुयोद्धाओंके मस्तकपर पर्वतोंकी वर्षा शत्रुघ्न बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने सुमति आदि मन्त्रियोंसे होने लगी। उन पर्वतोंने वायुकी गतिको रोक दिया। घिरकर उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की। राजा सुबाहुका भाई और पुत्रोंसहित युद्धमें आना तथा सेनाका क्रौञ्च-व्यूहनिर्माण शेषजी कहते हैं-मुने ! उधर राजा सुबाहुने जब पहुँचा। उसके साथ राजकुमारका बड़ा भारी युद्ध हुआ, देखा कि मेरे सैनिक रक्तमें डूबे हुए आ रहे हैं तो उनका जो रोंगटे खड़े कर देनेवाला था। आपके पुत्र दमन शोक शान्त-सा करते हुए उन्होंने अपने पुत्रकी करतूत अपने बाणोंसे उस अश्व-रक्षकको मूर्छित करके ज्यों ही पूछी। राजाका प्रश्न सुनकर उनके सेवकोंने, जो खूनसे स्थिर हुए त्यों ही शत्रुघ्न भी अपनी सेनाओंसे घिरे हुए लथपथ हो रहे थे तथा जिन्होंने रक्तसे भीगे हुए वस्त्र उपस्थित हो गये। तदनन्तर दोनों दलोंमें बड़ा भयङ्कर धारण कर रखा था, इस प्रकार उत्तर दिया-'राजन् ! युद्ध छिड़ा, उसमें सब प्रकारके अस्त्र-शस्त्रोका प्रयोग आपके पुत्रने स्वर्णमय पत्र आदिके चिह्नोंसे अलङ्कत होने लगा। उस युद्धमें आपके महाबली पुत्रने अनेकों यज्ञसम्बन्धी अश्वको जब आते देखा तो वीरताके गर्वसे बार विजय पायी है, किन्तु इस समय शत्रुघ्नके भतीजेने शत्रुघ्रको तिनकेके समान समझकर-उनकी कुछ भी वज्रास्त्र छोड़कर आपके वीर पुत्रको रणभूमिमें मूर्च्छित परवा न करके उसे पकड़वा लिया। इतनेहीमें घोड़ेके कर दिया है।' पीछे चलनेवाला रक्षक थोड़ी-सी सेनाके साथ वहाँ आ सेवकोंकी यह बात सुनकर राजा सुबाहु राजधानीसे
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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