SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६२ अर्थयस्व हृषीकेशं यदीच्छसि परं पदम् • बड़ा हाहाकार मचा। समस्त योद्धा भागकर वहाँ पहुँचे जहाँ करोड़ों वीरोंसे घिरे हुए शत्रुघ्रजी मौजूद थे। प्रतापायको परास्त करके राजकुमार दमनने विजय पायी और अब वह शत्रुनकी प्रतीक्षा करने लगा । उधर शत्रुघ्रको जब यह हाल मालूम हुआ तो वे क्रोधमें भरकर दाँतोंसे दाँत पीसते हुए बारंबार सैनिकोंसे पूछने लगे — 'कौन मेरा घोड़ा ले गया है ? किसने शूर - शिरोमणि राजा प्रतापाग्र्यको परास्त किया है ?' तब सेवकोंने कहा- 'राजा सुबाहुके पुत्र दमनने प्रतापायको पराजित किया है और वे ही यज्ञका घोड़ा ले गये हैं।' यह सुनकर शत्रुघ्न बड़े वेगसे चलकर युद्धभूमिमें आये। वहाँ उन्होंने देखा, कितने ही हाथियोंके गण्डस्थल विदीर्ण हो गये हैं, घोड़े अपने सवारोंसहित घायल होकर मरे पड़े हैं। यह सब देखकर शत्रुनके नेत्र क्रोधसे लाल हो गये; वे अपने योद्धाओंसे बोले- 'यहाँ मेरी सेनामें सम्पूर्ण अस्त्र-शस्त्रोंका ज्ञान रखनेवाला कौन ऐसा वीर है, जो राजकुमार दमनको परास्त कर सकेगा ?' शत्रुघ्रका यह वचन सुनकर शत्रुवीरोंका नाश करनेवाले पुष्कलके हृदयमें दमनको जीतनेका उत्साह हुआ और उन्होंने इस प्रकार कहा - 'स्वामिन्! कहाँ यह छोटा सा राजकुमार दमन और कहाँ आपका असीम बल! महामते ! मैं अभी जा रहा हूँ, आपके प्रतापसे दमनको परास्त करूँगा। युद्धके लिये मुझ सेवकके उद्यत रहते हुए कौन घोड़ा ले जायेगा ? श्रीरघुनाथजीका प्रताप ही सारा कार्य सिद्ध करेगा। स्वामिन्! मेरी प्रतिज्ञा सुनिये इससे आपको प्रसन्नता होगी। यदि मैं दमनको परास्त न करूँ तो श्रीरामचन्द्रजीके चरणारविन्दोंके रसास्वादनसे विलग (श्रीरामचरणचिन्तनसे दूर) रहनेवाले पुरुषोंको जो पाप लगता है, वही मुझे भी लगे। यदि मैं दमनपर विजय न पाऊँ तो जो पुत्र माताके चरणोंसे पृथक् दूसरा कोई तीर्थ मानकर उसके साथ विरोध करता है, उसको लगनेवाला पाप मुझे भी लगे।' पुष्कलकी यह प्रतिज्ञा सुनकर शत्रुघ्नजीके मनमें बड़ी प्रसन्नता हुई और उन्होंने उन्हें युद्धमें जानेकी आज्ञा [ संक्षिप्त पद्मपुराण ********** दे दी। आज्ञा पाकर पुष्कल बहुत बड़ी सेनाके साथ उस स्थानपर गये, जहाँ वीरवंशमें उत्पन्न राजकुमार दमन मौजूद था। युद्धक्षेत्रमें पुष्कलको आया जान वीराग्रगण्य दमन भी अपनी सेनासे घिरा हुआ आगे बढ़ा। दोनोंका एक-दूसरेसे सामना हुआ। अपने-अपने रथपर बैठे हुए दोनों वीर बड़ी शोभा पा रहे थे, उस समय पुष्कलने महाबली राजकुमारसे कहा- 'दमन ! तुम्हें मालूम होना चाहिये कि मैं तुम्हारे साथ युद्ध करनेके लिये प्रतिज्ञा करके आया हूँ, मेरा नाम पुष्कल है, मैं भरतजीका पुत्र हूँ; तुम्हें अपने शस्त्रोंसे परास्त करूंगा। महामते ! तुम भी हर तरहसे तैयार हो जाओ।' पुष्कलकी उपर्युक्त बात सुनकर उसने हँसते-हँसते उत्तर दिया- 'भरतनन्दन ! मुझे राजा सुबाहुका पुत्र समझो, मेरा नाम दमन है; पिताके प्रति भक्ति रखनेके कारण मेरे सारे पाप दूर हो गये हैं, महाराज शत्रुनका घोड़ा ले जानेवाला मैं ही हूँ। विजय तो दैवके अधीन है, दैव जिसे देगा - जिसे अपनी कृपासे अलङ्कृत करेगा, उसे ही विजय मिलेगी। परन्तु तुम युद्धके मुहानेपर डटे रहकर मेरा पराक्रम देखो।' यों कहकर दमनने धनुष चढ़ाया और उसे कानतक खींचकर शत्रुओंके प्राण लेनेवाले तीखे बाणोंको छोड़ना आरम्भ किया। उन बाणोंने आकाशमण्डलको ढक लिया और उनकी छायासे सूर्यदेवकी किरणोंका प्रकाश भी रुक गया। राजकुमारके चलाये हुए उन बाणोंकी चोट खाकर कितने ही मनुष्य, रथ, हाथी और घोड़े धरतीपर लोटते दिखायी देने लगे। शत्रुवीरोंका नाश करनेवाले पुष्कलने उसका वह पराक्रम देखा तथा आचमन करके एक बाण हाथमें लिया और उसे अग्निदेवके मन्त्रसे विधिपूर्वक अभिमन्त्रित करके अपने धनुषपर रखा । तदनन्तर भलीभाँति खींचकर उसे शत्रुओंके ऊपर छोड़ दिया। धनुषसे छूटते ही उस बाणसे युद्धके मुहानेपर भयङ्कर आग प्रकट हुई। वह अपनी ज्वालाओंसे आकाशको चाटती हुई प्रलयानिके समान प्रज्वलित हो उठी। फिर तो दमनकी सेना रणभूमिमें दग्ध होने लगी, उसके ऊपर त्रास छा गया और वह आगकी लपटोंसे पीड़ित होकर भाग चली।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy