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________________ भूमिखण्ड ] • कुञ्जालका अपने पुत्र विज्वालको श्रीवासुदेवाभिमान-स्तोत्र समाना • ... .. .. A I IIIIIII शरण लेता हूँ। जो सर्वत्र विद्यमान, सबकी मृत्युके हेतु, उसमें अवगाहन करके मोक्ष प्राप्त करते हैं, उन भगवान् सबके आश्रय, सर्वमय तथा सर्वस्वरूप हैं, जो इन्द्रियोंके वासुदेवकी मैं शरण लेता हूँ। जहाँ भगवान् श्रीविष्णुका बिना ही विषयोंका अनुभव करते हैं, उन भगवान् चरणोदक रहता है, वहाँ गङ्गा आदि तीर्थ सदैव मौजूद वासुदेवकी मैं शरण ग्रहण करता हूँ। जो अपने तेजोमय रहते हैं; आज भी जो लोग उसका पान करते हैं, वे पापी स्वरूपसे समस्त लोकों तथा चराचर जगत्के सम्पूर्ण रहे हों तो भी शुद्ध होकर श्रीविष्णुभगवानके उत्तम जीवोंका पालन करते है तथा केवल ज्ञान ही जिनका धामको जाते हैं। जिनका शरीर अत्यन्त भयंकर पापस्वरूप है, उन परम शुद्ध भगवान् वासुदेवकी मैं शरण पङ्कमे सना है, वे भी जिनके चरणोदकसे अभिषिक्त लेता हूँ। होनेपर मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं, उन परमेश्वरके जो दैत्योंका अन्त करनेवाले, दुःख-नाशके मूल युगलचरणोको मैं निरन्तर प्रणाम करता हूँ। उत्तम कारण, परम शान्त, शक्तिशाली और विराटपधारी हैं; सुदर्शन चक्र धारण करनेवाले महात्मा श्रीविष्णुके जिनको पाकर देवता भी मुक्त हो जाते हैं, उन भगवान् नैवेद्यका भक्षण करनेमात्रसे मनुष्य वाजपेय यज्ञका फल वासुदेवकी मैं शरण लेता हूँ। जो सुखस्वरूप और प्राप्त करते हैं तथा सम्पूर्ण पदार्थ पा जाते हैं। दुःखोका सुखसे पूर्ण हैं, सबके अकारण प्रेमी हैं, जो देवताओंके नाश करनेवाले, मायासे रहित, सम्पूर्ण कलाओंसे युक्त स्वामी और ज्ञानके महासागर हैं, जो परम हितैषी, तथा समस्त गुणोंके ज्ञाता जिन भगवान् नारायणका ध्यान कल्याणस्वरूप, सत्यके आश्रय और सत्त्व गुणमें स्थित करके मनुष्य उत्तम गतिको प्राप्त होते हैं. उन हैं, उन भगवान् वासुदेवका मैं आश्रय लेता हूँ। यज्ञ और श्रीवासुदेवको मैं सदा प्रणाम करता हूँ। पुरुषार्थ जिनके रूप हैं; जो सत्यसे युक्त, लक्ष्मीके पति, जो ऋषि, सिद्ध और चारणोंके वन्दनीय हैं: देवगण पुण्यस्वरूप, विज्ञानमय तथा सम्पूर्ण जगत्के आश्रय हैं, सदा जिनकी पूजा करते हैं, जो संसारको सृष्टिका साधन उन भगवान् वासुदेवकी मैं शरण लेता हूँ। जो क्षीर- जुटानेमें ब्रह्मा आदिके भी प्रभु हैं, संसाररूपी सागरके बीचमें शेषनागकी विशाल शय्यापर शयन करते महासागरमें गिरे हुए जीवका जो उद्धार करनेवाले हैं, हैं तथा भगवती लक्ष्मी जिनके युगल चरणारविन्दोंकी जिनमें वत्सलता भरी हुई है, जो श्रेष्ठ और समस्त सेवा करती रहती हैं, उन भगवान् वासुदेवकी मैं शरण कामनाओंको सिद्ध करनेवाले हैं; उन भगवान्के उत्तम लेता हूँ। श्रीवासुदेवके दोनों चरण-कमल पुण्यसे युक्त, चरणोंको मैं भक्तिपूर्वक प्रणाम करता हूँ। जिन्हें असुरोंने सबका कल्याण करनेवाले तथा सर्वदा अनेकों तीर्थोंसे अपने यज्ञमण्डपमें देवताओंसहित सामगान करते हुए सुसेवित है, मैं उन्हें प्रतिदिन प्रणाम करता हूँ। वामन ब्रह्मचारीके रूपमें देखा था; जो सामगानके लिये श्रीवासुदेवका चरण समस्त पापोंको हरनेवाला है, वह उत्सुक रहते हैं, त्रिलोकीके जो एकमात्र स्वामी हैं तथा लाल कमलकी शोभा धारण करता है उसके तलवेमे युद्धमे पाप या मृत्युसे डरे हुए आत्मीयजनोंको जो अपनी ध्वजा और वायुके चिह्न है; वह नपुरों तथा मुद्रिकाओंसे ध्वनिमात्रसे निर्भय बना देते हैं, उन भगवानके परम विभूषित है। ऐसी सुषमासे युक्त भगवान् वासुदेवके पावन युगल चरणारविन्दोकी मै वन्दना करता हूँ। जो चरणको मैं प्रणाम करता हूँ। देवता, उत्तम सिद्ध, मुनि यज्ञके मुहानेपर विप्र-मण्डलीमें खड़े हो अपने तथा नागराज वासुकि आदि जिसका भक्तिपूर्वक सदा ही ब्राह्मणोचित तेजसे देदीप्यमान एवं पूजित हो रहे हैं, स्तवन करते हैं, श्रीवासुदेवके उस पवित्र चरणकमलको दिव्य तेजके कारण किरणोंके समूह-से जान पड़ते है मैं प्रतिदिन प्रणाम करता हूँ। जिनकी चरणोदकस्वरूपा तथा इन्द्रनील मणिके समान दिखायी देते हैं, जो गङ्गाजीमें गोते लगानेवाले प्राणी पवित्र एवं निष्पाप देवताओंके हितकी इच्छासे विरोचनके दानी पुत्र बलिके होकर स्वर्गलोकको जाते हैं तथा परम संतुष्ट मुनिजन समक्ष 'मुझे तीन पग भूमि दीजिये। ऐसा कहकर
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
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