SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः॥ संक्षिप्त पद्मपुराण .. . भूमिखण्ड शिवशर्माके चार पुत्रोंका पितृ-भक्तिके प्रभावसे श्रीविष्णुधामको प्राप्त होना ये सर्वदेव परमेश्वरं हि निष्केवल ज्ञानमयं प्रधानम्। विचार किया और वेदशर्माके पास जाकर वदन्ति नारायणमादिसिद्ध सिद्धेश्वरं तं शरणं प्रपद्ये ॥* कहा-'बेटा ! मैं स्त्रीके बिना नहीं रह सकता। तुम मेरी (१६।३५) आज्ञा मानकर जाओ और समस्त सौभाग्य-सम्पत्तिसे सूतजी कहते हैं-पश्चिम-समुद्रके तटपर द्वारका युक्त जो स्त्री मैंने देखी है, उसे मेरे लिये यहाँ बुला नामसे प्रसिद्ध एक नगरी है। वहाँ योगशास्त्रके ज्ञाता एक लाओ।' पिताके ऐसा कहनेपर वेदशर्मा बोले-'मैं ब्राह्मण-देवता सदा निवास करते थे। उनका नाम था आपका प्रिय कार्य करूँगा।' यों कहकर वे पिताको शिवशर्मा। वे वेद-शास्त्रोंके अच्छे विद्वान् थे। उनके प्रणाम करके चले गये और उस स्त्रीके पास पहुँचकर पाँच पुत्र हुए, जिन्हें शास्त्रोंका पूर्ण ज्ञान था। उनके नाम बोले-'देवि! मेरे पिता तुम्हारे लिये प्रार्थना करते हैं; इस प्रकार है-यज्ञशर्मा, वेदशर्मा, धर्मशर्मा, विष्णुशर्मा यद्यपि वे वृद्ध हैं तथापि तुम मेरे अनुरोधसे उनपर कृपा तथा सोमशर्मा-ये सभी पिताके भक्त थे। द्विजश्रेष्ठ करके उनके अनुकूल हो जाओ।' शिवशर्माने उनकी भक्ति देखकर सोचा-'पितृभक्त वेदशर्माकी ऐसी बात सुनकर मायासे प्रकट हुई पुरुषोंके हदयमें जो भाव होना चाहिये, वह मेरे इन उस स्त्रीने कहा-'ब्रह्मन् ! तुम्हारे पिता बुढ़ापेसे कष्ट पा पुत्रोंके हृदयमें है या नहीं इस बातको बुद्धिपूर्वक रहे हैं; अतः मैं कदापि उन्हें पति बनाना नहीं चाहती। परीक्षा करके जाननेका प्रयत्न करूँ।' शिवशर्मा ब्रह्म- उन्हें खाँसीका रोग है, उनके मुँहमें कफ भरा रहता है। वेत्ताओंमें श्रेष्ठ थे। उन्हें उपायका ज्ञान था। उन्होंने इस समय दूसरी-दूसरी बीमारियोंने भी उन्हें पकड़ रखा मायाद्वारा अपने पुत्रोंके सामने एक घटना उपस्थित की। है। रोगके कारण वे शिथिल एवं आर्त हो गये हैं; अतः पुत्रोंने देखा, उनकी माता महान् ज्वररोगसे पीड़ित होकर मुझे उनका समागम नहीं चाहिये। मैं तुम्हारे साथ रमण मृत्युको प्राप्त हो गयी। तब वे पिताके पास जाकर करना चाहती हूँ। तुम्हारा प्रिय कार्य करूँगी। तुम दिव्य बोले-'तात ! हमारी माता अपने शरीरका परित्याग लक्षणोंसे सम्पन्न, दिव्यरूपधारी तथा महान् तेजस्वी हो; करके चली गयी। अब उसके विषयमें आप हमें क्या अतः मैं तुम्हींको पाना चाहती हूँ। मानद ! उस बूढ़ेको आज्ञा देते हैं ?' द्विजश्रेष्ठ शिवशर्माने अपने भक्तिपरायण लेकर क्या करोगे। मेरे शरीरका उपभोग करनेसे तुम्हें ज्येष्ठ पुत्र यज्ञशर्माको सम्बोधित करके कहा-'बेटा! समस्त दुर्लभ सुखोकी प्राप्ति होगी, विप्रवर ! तुम्हें इस तीखे हथियारसे अपनी माताके सारे अङ्गोंको टुकड़े- जिस-जिस वस्तुकी इच्छा होगी, वह सब ला दूँगी; इसमें टुकड़े करके इधर-उधर फेंक दो। पुत्रने पिताकी आज्ञाके तनिक भी सन्देह नहीं है।' अनुसार ही कार्य किया। पिताने भी यह बात सुनी। यह महान् पापपूर्ण अप्रिय वचन सुनकर वेदशर्माने इससे उन्हें उस पुत्रकी भक्तिके विषयमें पूर्ण निश्चय हो कहा-'देवि! तुम्हारा वचन अधर्मयुक्त, पापमिश्रित गया। अब उन्होंने दूसरे पुत्रकी पितृ-भक्ति जाननेका और अनुचित है। मैं पिताका भक्त और निरपराध हूँ ___* जिन्हें सर्वदेवस्वरूप, परमेश्वर, केवल, ज्ञानमय और प्रधानरूप कहते हैं, उन सिद्धोंके स्वामी आदिसिद्ध भगवान् श्रीनारायणकी मैं शरण हूँ।
SR No.034102
Book TitleSankshipta Padma Puran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages1001
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size73 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy