SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रमण महर्षि मे से है, न ही इन्द्रिय पदार्थों, न ही कर्मेन्द्रियो मे से है, न प्राण है, न मन हैं और न ही यह प्रगाढ निद्रा की स्थिति है, जहाँ इन सबका कोई ज्ञान नही रहता । शिवप्रकाशम् अगर इनमे से मैं कोई नही हूँ तो फिर मैं क्या हूँ ? ५२ भगवान् इनमे से सवका निषेध करने और यह कहने के उपरान्त कि 'मैं यह नही हूँ' जो अन्त मे शेष रह जाता है, वह 'मैं' है और वही चैतन्य है । शिवप्रकाशम् उस चैतन्य का स्वरूप क्या है ? भगवान् वह सच्चिदानन्द है, जिसमे 'मैं' के विचार का लेशमात्र भी नही है । इसे मौन या आत्मा भी कहते हैं । केवल इसी का अस्तित्व है । अगर ईश्वर, जीव और प्रकृति इन तीनो को पृथक् माना जाय तो ये शक्ति मे रजत के भ्रम की तरह केवल भ्रम मात्र हैं । ईश्वर, जीव और प्रकृति वस्तुत शिवस्वरूप या आत्मस्वरूप हैं । शिवप्रकाशम् हम उस वास्तविक सत्ता का किस प्रकार साक्षात्कार कर सकते हैं ? भगवान् जब दृश्य वस्तुएँ लुप्त हो जाती हैं तव द्रष्टा या कर्त्ता का वास्तविक स्वरूप प्रकट होता है । शिवप्रकाशम् क्या वाह्य वस्तुओ को देखते हुए उस परम तत्त्व का साक्षात्कार सभव नही है ? भगवान् नही, द्रष्टा और दृश्य रज्जु और उसमे सप की भ्रान्ति के समान हैं । जब तक आप सर्प की भ्रान्ति से छुटकारा नही पा लेते, आप यह नही देख सकते कि जो कुछ है, वह केवल रज्जु ही है । शिवप्रकाशम् वाह्य वस्तुएँ कब लुप्त हो जायँगी ? भगवान् अगर सभी विचारो और गतिविधियो का कारण मन लुप्त हो जाय तो सभी वाह्य पदार्थ लुप्त हो जायँगे । शिवप्रकाशम् मन का स्वरूप क्या है ? भगवान् मन केवल विचार है, यह एक प्रकार की शक्ति है । यह स्वय को ससार के रूप मे प्रकट करता है । जव मन आत्मा मे निमग्न हो जाता है तव आत्म-साक्षात्कार होता है, जब मन वाहर विचरने लगता है, ससार प्रकट होता है और आत्मा की अभिव्यक्ति नही होती । शिवप्रकाशम् मन का किस प्रकार लोप होगा ? ?' भगवान् केवल इस जिज्ञासा द्वारा कि 'मैं कौन हूँ यह जिज्ञासा भी मानसिक प्रक्रिया है, जो अपने सहित सव मानसिक क्रियाओ को वैसे ही नष्ट कर देती है, जैसे जिस डडे से चिता को हिलाया जाता है, वह चिता और शव के भस्म होने के बाद स्वयं भी भस्म हो जाता है । केवल तभी व्यक्ति को
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy