SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८ रमण महर्षि साधिका प्रशिक्षण विधियो को ढाल लेते हैं । आधुनिक ससार मे बहुत से ऐसे व्यक्ति हैं जिनके लिए परित्याग या रूढिनिष्ठता का पूर्णत परिपालन असम्भव है। बहुत से भक्तजन ऐसे हैं जो व्यापारी, कार्यालय कर्मचारी, डाक्टर, वकील और इजीनियर हैं तथा किसी न किसी प्रकार से आधुनिक नगर की जीवनपद्धति से सबद्ध हैं और फिर भी मुक्ति की खोज मे हैं। श्रीभगवान् प्राय कहा करते थे कि सच्चा परित्याग मन मे है। न तो भौतिक परित्याग से इसकी प्राप्ति होती है और न भौतिक परित्याग के अभाव मे, इसके मार्ग मे बाधा पडती है। ___ "आप यह क्यो सोचते हैं कि आप गृहस्थी हैं ? इसी प्रकार के विचार कि आप सन्यासी हैं, अगर आप घर-गृहस्थी छोडकर बाहर भी चले जायें, फिर भी आपका पीछा नहीं छोड़ेंगे । चाहे आप गृहस्थी रहें या गृहस्थी का परित्याग कर दें और जगल मे चले जाये, यह आपका मन ही है जो आपका पीछा करता रहता है। अह ही विचारो का स्रोत है। यही शरीर और ससार की सृष्टि करता है और यही आपको यह सोचने पर बाध्य करता है कि आप गृहस्थ है। अगर आप परित्याग कर दें तो आप केवल परिवार के स्थान पर परित्याग के विचार और घर के स्थान पर जगल की परिस्थितियो को प्रतिस्थापित करेंगे । परन्तु मानसिक बाधाए सदा आपके सामने रहेगी । नई परिस्थितियो मे तो वे और भी अधिक बढ़ जाती हैं। परिस्थितियो के परिवर्तन से कोई लाभ नही। हमारी वाधा मन है, चाहे घर हो या जगल हमे इस पर विजय प्राप्त करनी है। अगर आप जगल मे मन पर विजय पा सकते हैं तो घर मे क्यो नही ? इसलिए परिस्थितियो को क्यो वदला जाय? कोई भी परिस्थितियां हो, आप अभी से प्रयत्न प्रारम्भ कर सकते हैं।" उन्होने यह भी बताया कि काय से साधना के मार्ग मे वाधा नही पडती वल्कि जिस मानसिक वृत्ति से यह किया जाता है, उससे बाधा पड़ती है। अनासक्ति भाव से अपना सामान्य कार्य-कलाप जारी रखना सभव है। उन्होंने महर्षीज गॉस्पल मे कहा है, " 'मैं काम करता हूँ यह भावना ही बाधा है। अपने से पूछो कि कौन काय करता है । स्मरण रखो कि तुम कौन हो । तव कार्य तुम्हे बन्धन मे नही डालेगा। यह स्वत जारी रहेगा।" देवराज मुदालियर लिखित डे बाई हे विद भगवान् मे इसकी पूरी व्याख्या की गयी है । ___"अनासक्ति भाव से जीवन के सब कार्य सपन्न करना और केवल आत्मा को ही वास्तविक समझना सभव है । यह मोचना गलत है कि अगर कोई व्यक्ति आत्म-लीन है, तो वह जीवन के कर्तव्यो का समुचित रीति मे पालन नही कर सकेगा । वह तो एक अभिनेता के समान है । वह पोशाक पहनता है, अभिनय करता है, और स्वय को वह व्यक्ति अनुभव करता है जिसका पाट
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy