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________________ ५४ रमण महर्षि "मुझे वासुदेव शास्त्री के आलिंगन और उनकी कंपकंपी का स्पष्ट अनुभव हो रहा था, उनके विलाप के शब्द स्पष्ट सुनायी पड रहे थे और उनका अथ मेरी समझ में आ रहा था। मुझे अपनी त्वचा का रग उडता हुआ दिखायी दिया और ऐसा लगा कि खून का दौरा वन्द हो रहा है, सांस रुक रही है और शरीर ठण्डा होता जा रहा है । इस स्थिति मे भी मेरा सामान्य चैतन्य बना हुआ था । मुझे जरा भी भय नहीं था और शरीर की इस अवस्था पर मुझे तनिक भी शोक नही था । मैं अपनी सामान्य स्थिति मे शिला के निकट बैठा था, अपनी आंखें वन्द कर ली थी और शिला का सहारा लेकर वही बैठा था । विना खून के दौरे और मॉम के मेरा शरीर उसी स्थिति मे था। यह अवस्था कोई दस या पन्द्रह मिनट तक रही। तब एकाएक मेरे शरीर मे कपन की एक लहर दौड पडी, प्रवल शक्ति के साथ खून का दौरा और सांस चालू हो गयी और शरीर के प्रत्येक अग से पसीना छूटने लगा । त्वचा पर जीवन का रग पुन प्रकट हो गया था । मैंने तव अपनी आँखें खोली और उठ खडा हुआ। मैंने कहा, "चलो, अव चलें ।" हम विना किसी और वाघा के विरूपाक्ष फन्दरा पर पहुंच गये । यही एकमात्र दौरा मुझे पहा जिसमे मेरा खून का दौरा और सांस दोनो रुक गये थे।" । तब बाद मे, जो गलत विवरण फैलने लगे थे, उन्हे दूर करने के लिए उन्होने यह वक्तव्य दिया "मैं किसी प्रयोजन से अपने को दौरे की हालत मे नही लाया था और न ही मैं यह देखना चाहता था कि मृत्यु के बाद मेरे शरीर की क्या अवस्था होगी । न ही मैंने यह कहा था कि दूसरो को चेतावनी दिये विना में इस शरीर का त्याग नहीं करूंगा। यह उन दौरो मे से था, जो मुझे कभी-कभी पहा करते थे । केवल इस वार दौरे ने भयकर रूप धारण कर लिया था।" इस अनुभव के सम्बन्ध मे शायद सबसे अधिक विशिष्ट बात यह है कि यह श्रीभगवान् के आध्यात्मिक जागरण के फलस्वरूप समुत्पन्न मृत्यु के समय की सहिष्णुता की आवृत्ति है, जो वास्तविक शारीरिक प्रदर्शन द्वारा प्रकट हो रही है । इससे हमे थायुमनावर कवि के उस पद का पुन स्मरण हो आता है, जिसे श्रीभगवान् प्राय उद्धृत किया करते थे "जब व्यक्ति उस सर्वव्यापिनी सत्ता से जिमका न आदि है, न अन्त और न मध्य, अभिभूत हो जाता है, तव उसे अद्वैत आनन्द की अनुभूति होती है।" इससे श्रीभगवान् के वाह्य सामान्य जीवन की ओर वापसी की प्रक्रिया की पूणता सूचित होती है । श्रीभगवान् अपनी जीवन-पद्धति मे कितने सामान्य और मानवीय थे, इस सम्बन्ध मे कुछ कहना कठिन है । परन्तु इसका वर्णन
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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