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________________ ५२ रमण महर्षि था। उन्होने यह अनुमान लगाया कि इस पत्ते को पानी नीचे बहा लाया होगा । और उस वृक्ष को, जिस पर इतने बड़े पत्ते लगते होगे देखने की इच्छा से उन्होने वाद मे एक अवसर पर पहाडी पर चढकर उस जलधारा तक पहुंचने का निश्चय किया। ऊबड़-खावह और दुर्गम पहाडी पर चढ़ने के बाद वह एक ऐसे स्थान पर पहुंचे, जहाँ से एक विशाल चपटी शिला दिखायी दी। इस चट्टान पर वह विशाल और हरा-भरा पीपल का वृक्ष था जिसकी वह तलाश मे थे । उन्हे उस नगी शिला पर उस वृक्ष को देखकर अत्यन्त आश्चर्य हुआ। उन्होंने चढना जारी रखा। परन्तु जैसे ही वे निकट पहुंचने वाले थे, उनकी टांग के स्पर्श से भिडो का एक छत्ता भडक उठा । भिड उडने लगे और उन्होने प्रतिशोध के क्रोध मे उनकी टांग पर धावा बोल दिया। श्रीभगवान् शान्त भाव से खडे रहे । उन्होने अत्यन्त नम्र भाव से भिडो के छत्ते को नष्ट करने के परिणामस्वरूप मिलने वाले उस दड को स्वीकार किया। परन्तु इस सकेत से उन्होने आगे न बढ़ने का निश्चय किया और वे कन्दरा मे वापस लौट आये । उन्हे गये हुए बहुत देर हो गयी थी इसलिए भक्तजन अत्यन्त चिन्तित हो रहे थे। जव उन्होने श्रीभगवान को देखा तो वे उनकी फूली हुई टांग को देखकर अत्यन्त भयभीत हो गये। उन्होने उस अगम्य पीपल के वृक्ष की ओर सकेत किया । वे फिर कभी उस ओर नही गये। उनके जो भक्तजन उस वृक्ष तक पहुँचना चाहते थे, उन्हे भी उन्होने निरुत्साहित किया । एक बार भक्तो के एक दल ने, जिसमे थामसन नामक एक अग्रेज भी थे, उस वृक्ष तक पहुँचने का सकेत किया। कुछ देर तक अन्धाधुन्ध बढने के बाद वे इतनी कठिन स्थिति मे पड गये कि न तो उनमे ऊपर जाने की हिम्मत रही और न नीचे उतरने की। उन्होने सहायता के लिए भगवान् से प्रार्थना की और किसी प्रकार सुरक्षित आश्रम वापस लौट आये। उन्होने फिर कमी कोशिश नहीं की। दूसरो ने भी प्रयास किया परन्तु उन्हे सफलता नहीं मिली। यद्यपि श्रीभगवान् किसी कार्य को निन्दनीय ठहराते थे तथापि बहुत कम अवसरो पर वह स्पष्टत इसके लिए निषेध करते थे। वह यह समझते थे कि क्या उचित है और क्या अनुचित, यह अन्तरात्मा ही बता सकती है। वर्तमान उदाहरण में उनके भक्तो के लिए स्पष्टत यह अनुचित था कि वे वह कार्य करें, जिसके लिए उनके स्वामी ने उन्हें मना किया है। एक समय ऐसा था जब भगवान् अक्सर पहाडी पर घूमते, इसकी चोटी पर चढते और इसकी प्रदक्षिणा करते ताकि वे इसके प्रत्येक भाग से परिचित हो सकें । एक दिन जब वह अकेले घूम रहे थे, वह एक वृद्ध महिला के पास से गुजरे । यह महिला पहाडी पर लकडियाँ इकट्ठी कर रही थी। वह एक साधारण अस्पृश्य महिला लगती थी परन्तु उसने एक सवण हिन्दू के समान अत्यन्त
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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