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________________ अरुणाचल ४६ इच्छा को कभी प्रोत्साहित नही करते थे, न ही ये दर्शन सभी भक्तो या शिष्यो को होते थे। इस समय श्रीभगवान् के सर्वाधिक श्रद्धालु भक्तो मे से एक शेपाद्रिस्वामी थे। ये वही शेषाद्रिस्वामी थे, जिन्होने श्रीभगवान् की स्कूल के विद्यार्थियो से रक्षा की थी, जब वे सर्वप्रथम तिरुवन्नामलाई आये थे। वे अब विरूपाक्ष कन्दरा से नीचे पहाड़ी पर रहते थे और वहाँ अकसर जाया करते थे। वे बहुत ऊंची आध्यात्मिक स्थिति में पहुंच चुके थे। उनमे देवोपम आकषण और सौन्दय था, जो उनके विद्यमान चित्रो में दिखायी देता है । वे पक्षियो के सदृश स्वतन्त्र और सबसे न्यारे दिखायी देते थे । प्राय उन तक लोगो की पहुंच नही हो पाती थो, वह प्राय मौन रहते थे और जब कभी वोलते थे तो वह प्राय समझ मे परे और पहेलियों से भरा होता था। उन्होंने १७ वर्ष की आयु मे घर छोड दिया था और उन मन्यों तथा जप की दीक्षा ली थी, जिनसे रहस्यमयी सिद्धियो का विकास होता है। कभी-कभी वे शक्ति की सिद्धि के लिए रात भर श्मशान में बैठे रहते थे। ___ न केवल वे हमेशा भक्तों को रमण स्वामी, जैसा कि वे उन्हें पुकारते थे, के पास जाने के लिए प्रोत्साहित करते थे बल्कि कई अवसरो पर वे अपने को रमण स्वामी के साथ एकरूप समझते थे । वे दूसरो के विचार जान जाते और अगर श्रीभगवान ने किसी भक्त से कोई बात कही होती तो वे कहा करते थे, “मैंने तुमसे ऐसा-ऐसा कहा था, तुम फिर क्यो पूछते हो ?" या "तुम इम पर आचरण क्यो नही करते ?" वे किसी मन्म की दीक्षा तो बहुत ही कम देते थे और अगर वह निवेदक पहले से ही रमण स्वामी का भक्त होता तो वे हमेशा इनकार कर देते थे, उसे वहां जाने के लिए कहते जहाँ सबमे बडा उपदेश मौन मागदशन का मिलता। ___ एक ही अवसर ऐसा आया जब उन्होंने वस्तुत एक भक्त को सक्रिय साधना के लिए प्रेरित किया। इस व्यक्ति का नाम सुब्रह्मण्य मुदाली था जो अपनी पत्नी और माता के साथ मिलकर, अपनी अधिकाश आय उन साधुओं के लिए, जिन्होंने ससार का परित्याग कर दिया था, भोजन तैयार करने में व्यय कर दिया करता था। अचम्माल की तरह वे प्रतिदिन श्रीभगवान और उनके आश्रमवासियो के लिए, और शेषाद्रिस्वामी के लिए भी अगर वे मिल जाय, भोजन ले जाया करते थे। साथ ही माथ सुब्रह्मण्य एक जमींदार था और मुकदमेबाजी मे फंसा हुआ था और अपनी सम्पत्ति वढाने की कोशिश कर रहा था । शेपाद्रिस्वामी को इस बात से बहुत दुख हुआ कि इतना वसा भक्त ससार म माया मोह में आसक्त है। उन्होंने उसे आदेश दिया कि वह इस प्रकार की सासारिख चिन्तामो का सवथा परित्याग कर दे, अपने को पूर्णत भगवान् के
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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