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________________ ४८ रमण महर्षि रहा था कि किम ओर जाएं, उनकी दणा अत्यन्त निराशाजनक थी, कि इस ममय श्रीभगवान् उनके पास से गुजरे और उन्होने उन्हे आश्रम का रास्ता दिखाया । आश्रम के लोग उन वृद्ध सज्जन के सम्बन्ध मे बहुत चिन्तित थे । जब वह वापस आये तव आश्रमवासियो ने उनसे मारी घटना पूछी । उन्होंने कहा, "मैं पहाडी पर मैर करने गया था और गस्ता भूल गया । मैं धूप और थकान सहन नहीं कर सका और मेरी अत्यन्त बुरी हालत हो गयी । मैं किंकर्तव्यविमूढ था कि इतने मे भगवान् वहां प्रकट हुए और उन्होंने मुझे आश्रम का गस्ता बताया ।" आश्रमवासी अत्यन्त विस्मय मे थे क्योकि भगवान् उम महाकक्ष से कभी बाहर नहीं गये थे। काठमाण्डू, नेपाल में त्रिचन्द्र कालेज के प्रिन्सिपल श्री रुद्रराज पाण्डे, तिरुवन्नामलाई से प्रस्थान करने से पूर्व, अपने एक मित्र के माथ, नगर के महान् देवालय मे पूजा करने के लिए गये । ___"अन्दर के देवालय के द्वार खोल दिये गये और हमारा मागदशक हमे भीतरी भाग की ओर ले गया जहां अंधेरा था । हमारे सामने कुछ गज़ की दूरी पर एक छोटी मोमवत्ती झिलमिल कर रही थी । मेरे तरुण साथी के कण्ठ से एकाएक निकल पडा 'अरुणाचल'। उस पवित्र स्थल मे मेरा समस्त ध्यान लिङ्गम् (जो उस देवाधिदेव शाश्वत और अनभिव्यक्त सत्ता का प्रतीक है) के दर्शन की ओर केन्द्रित हो गया । परन्तु वडी अद्भुत बात है कि लिङ्गम् के स्थान पर मुझे महपि भगवान् श्रीरमण की मूत्ति दिखाई देने लगी, उनका वह स्थिर वदन और देदीप्यमान नेत्र मेरी ओर थे। और इससे अधिक विचित्र वात यह है कि यह एक महर्पि नही था, जिसे मैं देख रहा था, न दो या तीन महर्षि थे, मैं सहस्रो की मख्या में वही स्थिर वदन और देदीप्यमान नेत्र देखने लगा। जिघर ही मैं उस पुनीत स्थल मे दृष्टि डालता मझे यह सव कछ दिखायी देता । मुझे महर्पि की पूरी आकृति नहीं दिखायी देती थी, केवल ठोडी से ऊपर उनका हंसता हुआ चेहरा दिखायी देता था। मेरे आनन्द का पारावार न रहा-मैंने जिस अनुपम आनन्द और शान्ति का अनभव किया, वह वणनातीत है। मेरी गालो पर आनन्दाश्रु वहने लगे। मैं भगवान अरुणाचल के दशनो के लिए मन्दिर मे गया और मैं साक्षात जीवित भगवान् का प्रसादभाजन बना। मुझे उस प्राचीन मन्दिर में जो गहरी अनुभूति हुई, उसे मैं कदापि विस्मृत नही कर सकता।" तथापि श्रीभगवान् इस प्रकार के दर्शनो मे दिलचस्पी या उनके लिए १ स्वर्ण-जयन्ती स्मृति-चिह्न, द्वितीय सस्करण, पृष्ठ १६६ ।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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