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________________ रमण महर्षि थी, वह पुन आत्मानन्द मे लीन हो गया। सूर्यास्त होते-होते गाडी त्रिचनापल्ली पहुंच चुकी थी और उसे भूख सता रही थी। उसने दो पैसे की दो वडी-वडी नाशपातियां, जो दक्षिण के पहाडी इलाको मे होती हैं, खरीदी। उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। नाशपाती के पहले ही टुकडे को मुंह मे डालने से उसकी भूख मिट-सी गयी, हालांकि इससे पहले वह हमेशा भर पेट खाता रहा था । वह जाग्रत निद्रा की आनन्दमयी स्थिति मे था कि प्रात काल तीन बजे गाडी विल्लुपुरम् पहुंची। वह दिन निकलने तक स्टेशन पर रहा और फिर कसवे मे तिरुवन्नामलाई जाने वाली सडक की तलाश करता रहा। उसने शेप रास्ता पैदल जाने का निर्णय कर लिया था। किसी नामस्तम्भ पर तिरुवन्नामलाई का नाम उसे लिखा हुआ नही मिला और उसने पूछना पसन्द भी नहीं किया। इधर-उधर चलने के बाद जब वह बहुत थक गया और उसे भूख सताने लगी तो उसने एक होटल मे प्रवेश किया और भोजन लाने के लिए कहा । होटल वाले ने उससे कहा कि भोजन दोपहर को तैयार होगा। इसलिए वह भोजन की प्रतीक्षा करने लगा और तत्काल ही चिन्तन मे डूब गया। थोडी देर प्रतीक्षा करने के बाद भोजन आ गया और भोजन खाने के बाद उसने दो आने भोजन के मूल्य के रूप मे दिये । परन्तु होटल वाला लम्बे बालो वाले, कानो मे बालियां डाले तथा साधु की तरह बैठे हुए इस सुन्दर ब्राह्मण युवक से अवश्य प्रभावित हुआ होगा । उसने वेंकटरमण से पूछा कि उसके पास कुल कितने पैसे हैं । जब उसे पता चला कि उसके पास केवल ढाई आने हैं तो उसने पैसे लेने से इन्कार कर दिया। उसने वेंकटरमण को यह भी बताया कि नामस्तम्भ पर उसने जो मामवालापटू नाम देखा था, वह तिरुवन्नामलाई के रास्ते मे है । इसके बाद वेंकटरमण वापस स्टेशन लौट आया और उसने मामवालापटू का टिकट खरीद लिया क्योकि ढाई आने मे वह इतनी दूर का टिकट ही खरीद सकता था। वह मध्याह्नोत्तर मामबालापट्ट पहुँचा और वहां से उसने पैदल चलना शुरू कर दिया। रात होने तक वह दस मील चल चुका था। उसके सामने एक महान् शिलाखण्ड पर बना हुआ अरयानीनल्लूर का मन्दिर था। इस लम्बी यात्रा से, जिसका अधिकाश भाग उसने दोपहर की गरमी मे तय किया था, वह थककर चूर हो चुका था। विश्राम करने के लिए वह मन्दिर के पास बैठ गया। थोडी देर वाद एक व्यक्ति आया और उसने मन्दिर के पुजारी तथा अन्य लोगो के लिए पूजा के निमित्त मन्दिर खोल दिया। वेंकटरमण ने मन्दिर मे प्रवेश किया और वह स्तम्भो वाले विशाल कक्ष मे बैठ गया, मन्दिर का केवल यही भाग ऐसा था जहाँ अभी पूरी तरह अंधेरा नही छाया था। उसने तत्काल एक उज्ज्वल प्रकाश देखा जो सारे मन्दिर को व्याप्त किये हए
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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