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________________ १७ उसने दोपहर के समय घर छोडा था । स्टेशन आधा मील दूर था । उसने तेजी से कदम वढाये क्योकि गाडी वारह बजे छूटती थी। हालांकि उसे देर हो गयी थी, परन्तु जव वह स्टेशन पहुँचा, तो अभी तक गाडी नही आयी थी । स्टेशन पर रेल-भाडे की एक सूची टगी हुई थी । उसने सूची मे देखा कि तिण्डीवनम् तक का तीसरे दरजे का किराया दो रुपये तेरह माने है । उसने टिकट खरीद लिया । उसके पास केवल तीन आने शेष रह गये । अगर उसने कुछ और नीचे तालिका मे देखा होता तो उसे वहाँ तिरुवन्नामलाई का नाम भी दिखायी दे जाता और इस स्थान का किराया ठीक तीन रुपये था । यात्रा की घटनाएँ लक्षोन्मुख जिज्ञासु के सतत प्रयास की प्रतीक है। पहले तो भगवान् की यह कृपा हुई कि उसे यात्रा - व्यय के लिए धनराशि मिल गयी, दूसरे, यद्यपि वह घर से देर से चला था, उसे गाडी मिल गयी। पैसे भी उसके पास ठीक उतने ही थे, जितने उसे गन्तव्य स्थान तक पहुँचने के लिए चाहिए थे । परन्तु यात्री की वेपरवाही के कारण उसकी यात्रा लम्बी हो गयी और उसे माग मे अनेक कठिनाइयो और कष्टो का सामना करना पडा । वेंक्टरमण अपने आनन्द की तालाश मे खोया हुआ यात्रियों मे चुपचाप वैठा हुआ था। इस प्रकार कई स्टेशन गुजर गये। एक सफेद दाढी वाले मौलवी साहब, जो सन्तो के जीवन और शिक्षाओ पर भाषण कर रहे थे, वेंकटरमण को सम्बोधित कर पूछने लगे यात्रा "स्वामी, आप कहाँ जा रहे हैं " तिरुवन्नामलाई ।" ܙ ܕ "मैं भी वही जा रहा हूँ ।" मौलवी ने जवाब दिया । "क्या कहा १ आप तिरुवन्नामलाई जा रहे हैं । " " तिरुवन्नामलाई तो नही, उससे एक स्टेशन आगे ।' "अगला स्टेशन कौन-सा है ?" "तिरुकोइलूर ।" तव अपनी गलती महसूस करते हुए वेंकटरमण ने आश्चय से कहा, "तो क्या गाडी तिरुवन्नामलाई तक जाती है ?" "तुम भी विचित्र यात्री हो । तुमने कहाँ का टिकिट खरीदा है। ने पूछा । 'मौलवी ܙܙ ܕ "तिण्डीवनम् का ।" " अरे भाई इतनी दूर जाने की जरूतर नहीं है। हम विल्लुपुरम् जक्शन पर उतर जाएँगे और वहाँ से तिरुवन्नामलाई और तिरुकोइलूर के लिए गाडी बदल लेंगे । भगवान् की असीम कृपा से वेंकटरमण को आवश्यक जानकारी मिल गयी
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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