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________________ महासमाधि १६१ था । परन्तु दूसरो का कहना था कि यह महिला सारी मानव-जाति या म्वय माया का प्रतीक है। १३ अप्रैल वृहस्पतिवार को एक डाक्टर श्रीभगवान् के लिए एक शामक ओपघि लाये ताकि फेफडो मे जो रक्त जमा हो गया था, वह ठीक से प्रवाहित होने लगे, परन्तु उन्होने इन्कार कर दिया। "यह आवश्यक नहीं है ? दो दिन मे सब कुछ ठीक हो जायेगा।" उस रात उन्होंने अपने भक्त मेवको से कहा कि वह जाकर सो रहे या चिन्तन करें और उन्हें अकेला छोड दें। शुक्रवार को डाक्टरो और सेवको को यह पता चल गया कि आज अन्तिम दिन है। प्रात काल फिर भगवान् ने उनसे जाने और चिंतन करने के लिए कहा । दोपहर के समय, जव उनके लिए तरल खाद्य पदार्थ लाया गया उन्होंने सदा की भाँति ममय पूछा, और इसके साथ ही कहा, "परन्तु अव से समय का कोई अभिप्राय नही है।" दीघकालीन सेवाओ के लिए सेवको के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्होने कहा, "अग्रेज़ लोग 'बैंक्स' शब्द का प्रयोग करते हैं परन्तु हम केवल सतोपम् ही कहते हैं।" __प्रातकाल शोक और आशका से मौन दर्शनार्थियो की लम्बी कतार मुक्त द्वार के सामने से गुजरती रही। इस प्रकार सायकाल के पांच वज गये । भगवान् का रोग-जजरित शरीर मुरझा गया था, पसलियों वाहर निकल आयी थो, त्वचा काली पट गयी थी। पीडा का यह दयनीय सकेत था। परन्तु इन अन्तिम कुछ दिनो मे, उन्होने प्रत्येक भक्त को अत्यन्त भावभरी आत्मीयता की दृष्टि से देखा और उमने ऐमा अनुभव किया कि यह भगवान् का विदायी का प्रमाद है। उम सायकाल दशन के बाद भक्तजन अपने घरो मे नही गये। आशका के कारण वह वही रहे। लगभग सूर्यास्त के समय श्रीभगवान् ने सेवको से कहा कि वह उन्हें सीधा बैठा दें। वह यह जानते थे कि भगवान् का प्रत्येक आन्दोलन, प्रत्येक म्पश पीडामय था, परन्तु उन्होने उनसे कह दिया था कि वह इसकी तनिक भी चिन्ता न करें । वह बैठ गये और एक सेवक उनके सिर को महारा दिये रहा । एक डाक्टर ने उन्ह आक्सीजन देना शुरू किया, परन्तु अपने दाहिने हाथ के इशारे मे उन्होंने उसे दूर हटा दिया। उस छोटे से कमरे में शाफ्टर और मेवर सब मिला कर लगभग एक दजन व्यक्ति थे । दो मेवर भगवान् का पता कर रहे थे और बाहर खडे भक्तजन खिडकी मे हिलते हुए पवो को निनिमेप नेत्रो से देख रहे थे । यह इस बात का सकेत घा नि अब भी भगवान् मे प्राण गेप हैं । एक प्रसिद्ध अमरीकी पत्रिका का
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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