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________________ १६० रमण महपि व्याख्या ठीक है, परन्तु यह विलकुल ठीक फिर भी नहीं है । ज्ञानी अपने शरीर के भार मे मुक्त होने के लिए चिंतित नही होता, यह शरीर की सत्ता या असत्ता के प्रति एक-मा उदासीन होता है, वह तो इससे परिचित ही नही होता।" ___ एक बार उन्होंने अपने एक भक्त से मोक्ष की व्याख्या करते हुए कहा था, "क्या आप जानते है कि मोक्ष क्या है ? अस्तित्व शून्य दु ख से छुटकारा पाना और सदा विराजमान परमानन्द की प्राप्ति, यही मोक्ष है।" ____ अव भी आशा की एक किरण मौजूद थी कि डाक्टगे की असफलता के बावजूद, भगवान् अगर चाहे तो अपनी बीमारी को दूर कर मकते हैं। एक भक्त ने उनसे प्रार्थना की कि वह एक बार अच्छा होने का विचार कर लें क्योकि यही पर्याप्त है, परन्तु उन्होंने घृणा मे उत्तर दिया "कौन ऐसा विचार कर सकता है ?" उन व्यक्तियो से जिन्होंने उन्हे स्वास्थ्य-कामना के लिए कहा, उनका कहना था, "यह इच्छा कौन करेगा ?" वह 'अन्य' व्यक्ति जो इस विधिविधान का विरोध कर सकता था, उमका अस्तित्व अव उनमे नही था, यह तो 'अस्तित्व-शून्य पीडा' थी जिसमे उन्होंने छुटकारा पा लिया था। कुछ भक्तो ने उनसे कहा कि वह अपने नही तो उनके ही कल्याण के निए म्वास्थ्य-लाभ की इच्छा करें। "भगवान के बिना माग क्या होगा ? हम अपनी देग्व-भाल म्वय करने के योग्य नहीं हैं, हम प्रत्येक वस्तु के लिए उनको अनुकम्पा पर निभर करते हैं।" और उन्होंने उत्तर दिया, "आप इम शरीर को बहुत अधिक महत्त्व देते है।" इसमे उनका स्पष्ट अभिप्राय यह था कि इस शरीर के अन्त से उनकी अनुकम्पा ओर मार्ग दशन म कोई व्याघात उपस्थित नही होगा। ___उसी म्बर मे उन्होंने कहा, "वह कहते हैं कि मैं मर रहा हूँ, परन्तु मैं कहीं नही जा रहा । मैं जा भी कहीं सकता हूँ? मैं यहां हैं।" एक पाग्मी भक्त महिला थीमती तालेयार खान ने उनमे प्रार्थना की, "भगवन् | आप यह अपनी बीमारी मुझे दे दें । मैं इमे महन करूंगी।" उन्होने उत्तर दिया, "और मुझे यह वीमारी विमने दी ?" तब किमने यह बीमारी उन्ह दी ? क्या यह हमारे कम का विप नही था ? एक स्वीडिश साघु ने स्वप्न मे दवा कि उनकी पीडित वाहु खुल गयी है और वहां उसे एक महिला का मिर दिग्वायी दिया जिसके सफेद वाल विम्बरे हए थे । भक्तो न इम स्वप्न की यह व्याख्या की कि यह उनकी माता का कर्म था जिसे उन्होंने माता को मोक्ष देते ममय अपने पर आरोपित कर लिया
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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