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________________ उपदेश १५७ है। इसके अतिरिक्त, बिना किसी स्वाथ के, त्याम कार्य के निष्पादन द्वाग, दृश्य परिणामो के अतिरिक्त, अधिक शक्तिशाली किन्तु मूक्ष्म रूप से, व्यक्ति दूसरों को भी लाभ पहुँचाता है। वह अपने को प्रत्यक्ष रूप से भी लाभ पहुंचाता है । वस्तुत निस्वार्थ काय को सच्चा वक खाता कहा जा सकता है। यह शुभ कर्मों का संग्रह है जिससे व्यक्ति के भविष्य का निर्माण होता है। ___इस प्रकार के उदाहरण में एक आगन्तुक द्वारा प्रश्न किये जाने पर, श्रीभगवान ने यह समझाया कि किस प्रकार की मानसिक वृत्ति मामाजिक या गजनीतिक गतिविधि को सच्ची साधना बना सकती है। परन्तु उन्होने अपने भक्तों को इस प्रकार की गतिविधियों में निमग्न होने मे निरुत्माहित किया । यही पर्याप्त था कि यह जीवन में अपने कार्यों को शुद्ध और निम्बाथ भाव ये करें, न्याय्य काय को केवल इसलिए करें कि यह न्याय्य है । यपि ममार वी वतमान अवस्था अशान्त है, यह एक विस्तृत ममम्बरता का भाग है, योर आत्म ज्ञान के विकास द्वारा व्यक्ति इस ममस्वरता को जान मकता है तथा घटना कम को परिवर्तित करने के प्रयासो की अपेक्षा अधिक ममम्बर प्रभाव डाल सकता है। इस विषय मे श्रीभगवान की शिक्षा, पाल अण्टन के माथ वार्तालाप में संग्रहीत है __पाल ब्रप्टन क्या महर्षि समार के भविष्य के सम्बन्ध में अपनी मम्मति दंगे क्योकि हम बडे नाजुक दौर मे से गुजर रहे हैं ? भगवान आप भविष्य के सम्बन्ध में क्यो चिन्तित होते हैं । आप अपने वतमान को भी ठीक तरह से नहीं जानते। बतमान का यान रखें और भविष्य अपना ध्यान स्वय रख लेगा। पाल अण्टन क्या ससार शीघ्र ही मैत्री और पारम्परिन महायता के नवयुग में प्रवेश करेगा या यह अव्यवस्था और युद्ध के गत मे गिरेगा। __ भगवान् समार में एक ही सत्ता है जो इस मामन पर करती है और ममार की देखभाल करना उसका ही काय है । जिसन इम ससारका जीवन प्रदान किया है, वह यह भी जानता है कि किस प्रकार इसकी समाली जाय । वह इस ससार का भार उठाये हुए है, आप नहीं। पाल अण्टन अगर व्यक्ति निष्पक्ष होकर भी चारा र प्रिपात आती है। करे, तो भी उसके लिए यह जानना काठन है कि यह दयामय देष्टि वान भगवान जैसे आप स्वय हागे, वैसा ही यह मसार अपने को समझे विना मसार को ममान वे प्रयास का क्या साम? सात है, जिस पर मत्या वेषियों का विचार करन की आवश्यकता नही है। लोग इस प्रकार के प्रश्नों पर अपनी शक्ति का प - .
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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