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________________ उपदेश और उन्होंने प्रश्न के उत्तर मे एक श्लोक की रचना की।" "शाश्वत सत्ता मे लीन रहना सच्ची सिद्धि है । अन्य उपलब्धियां तो स्वप्नावस्था की वस्तुओ के समान हैं । क्या जाग्रत अवस्था मे वे सत्य सिद्ध होती हैं ? क्या शाश्वत सत्ता मे लीन और निर्धान्त व्यक्ति इन बातो की परवाह करेंगे ?" । ___ चमत्कारिक शक्तियां आध्यात्मिक पथ की वाघा हैं । सिद्धियां और उनसे वढकर सिद्धियो की इच्छा साधक के माग की वाधा है। देविकालोत्तरम् मे, जिसका श्रीभगवान् ने सस्कृत से तमिल में अनुवाद किया, लिग्वा है "व्यक्ति चमत्कारी सिद्धियो को, भले ही वह उसे प्रत्यक्षत प्रदान की जाये, स्वीकार न करे, वह तो उन रस्सो के समान हैं, जिनसे पशु को वांधा जाता है और देरसवेर वह व्यक्ति को अध पतन की ओर ले जाती है। यह मुक्ति का मार्ग नहीं है। अनन्त चैतन्य के अतिरिक्त अन्यत्र इसकी उपलब्धि नहीं होती।" इस विषयान्तरण से हम अपने विपय की ओर आते हैं। श्रीभगवान ने आत्म-अन्वेषण का केवल चिन्तन के तकनीक रूप में ही नही बल्कि जीवन के तकनीक रूप मे भी निर्धारण किया । जव उनसे यह प्रश्न किया गया कि क्या इसका सदा प्रयोग किया जाना चाहिए या केवल चिन्तन के निश्चित समय मे, तो उन्होंने उत्तर दिया, "हमेशा ।" इससे यह सूचित होता है कि वे सासारिक जीवन का परित्याग करने के लिए नही कहते थे क्योकि जो परिस्थितियाँ साधना के माग की वाधाएँ थीं, वे इस प्रकार साधना के साधन मे परिवर्तित हो जाती थी । अन्तत , साधना अह पर एक प्रहार है और जब तक अह आशा और भय में, महत्वाकाक्षा और विक्षोभ मे, किसी प्रकार के मावेश या इच्छा मे निमग्न है, तब तक हम कितना ही चिन्तन करें हमे सफलता नही मिल सकती। श्रीराम और राजा जनक यद्यपि ससार मे रहते थे तथापि वह आसक्ति से मुक्त थे । जिस साधु ने श्रीभगवान् पर पत्थर लुढ़काने का प्रयत्न किया था, वह आसक्ति में आवद्ध था हालांकि उसने ससार का परित्याग कर दिया था। ___ साथ ही, इसका यह अथ नहीं कि विना किसी आन्दोलन की योजना के निभ्वाथ काय ही पर्याप्त है क्योकि मह सूक्ष्म और आग्रही है और यह उन क्रियाओ मे शरण ले लेगा, जिनका उद्देश्य इसे नष्ट करना है, जैसे इसे नम्रता या तपश्चर्या मे अभिमान की अनुभूति होती है। आत्म अन्वेपण दैनिक किया है। विचार आने पर अपने से यह प्रश्न करना कि 'मैं कौन हूँ', आन्दोलन की एक प्रभावशाली योजना है। जब एक अनुद्वेगात्मक विचार पर इसका प्रयोग किया जाय, जैसे किसी पुस्तक या फिल्म के सम्बन्ध मे किसी की सम्मति, तो ऐसा प्रतीत न हो, परन्तु जब इमका प्रयोग उद्वेगात्मक विचार पर किया जाता है, इसका प्रवल प्रभाव होता
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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