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________________ १५४ रमण महपि अन्य विचारो का जनक है और उस शान्ति मे प्रवेश करता है, जहां कोई विचार नहीं होता। ___ "चिन्तन के दौरान, अन्वेषण के प्रबोधक उत्तर नही दिये जाने चाहिए जैसे 'शिवोऽहम्' (मैं शिव हूँ) । सच्चा उत्तर स्वयमेव आयेगा । अह द्वारा दिया जाने वाला कोई उत्तर ठीक नहीं हो सकता।" प्रथम अध्याय के अन्त मे वणित आत्म-ज्ञान की धारा से यह उत्तर उद्भूत होता है, यह व्यक्ति की आत्मा को आन्दोलित करता है परन्तु फिर भी अवैयक्तिक होता है । निरन्तर अभ्यास से इसका पुनरावर्तन होता है और अन्त मे एक स्थिति ऐसी आती है जब कि न केवल चिन्तन के दौरान बल्कि हमारी वाणी और क्रिया में भी यह निरन्तर विराजमान रहने लगता है फिर भी हमे विचार का प्रयोग करना है, क्योकि अह ज्ञान वारा के साथ सन्धि करने का प्रयास करेगा और अगर एक बार इसे सहन कर लिया जाय, तो यह धीरे-धीरे शक्तिशाली हो जायेगा और फिर उन गैर-यहूदियो की तरह जिन्हे यहूदियो ने स्वर्ग मे रहने की आज्ञा दे दी थी, प्रभुत्व के लिए लडेगा । श्रीभगवान् बलपूर्वक कहा करते थे (उदाहरण के लिए, शिव प्रकाशम् पिल्लई को दिये गये अपने उत्तरो मे) कि अन्वेपण अन्त तक जारी रहना चाहिए । जो भी स्थितियां, जो भी सिद्धियां, जो भी इन्द्रियानुभव या दर्शन हो, हमेशा यह प्रश्न रहता है कि यह किसे होते है और अन्तत केवल आत्मा रह जाता है । वस्तुत दर्शन और सिद्धियां वाधा सिद्ध हो सकती हैं, वह मन को इतने प्रवल रूप से जकड लेती है जैसे कि भौतिक शक्ति या आनन्द के प्रति आमक्ति और इसे इस भ्रम मे डाल देती है कि इसका आत्मा मे रूपान्तरण हो गया है। और जिस प्रकार भौतिक शक्तियां तथा आनन्दो के साथ होता है, इसके लिए इच्छा इनकी प्राप्ति की अपेक्षा अधिक घातक होती है। एक वार का जिक्र है नरसिंह स्वामी श्रीभगवान के सम्मुख बैठे हुए थे और विवेकानन्द के • जीवन तथा उपदेशो का तमिल में अनुवाद कर रहे थे। इस वीच वह विख्यात प्रसग आया जब श्री रामकृष्ण के एक स्पर्श ने विवेकानन्द को सभी वस्तुआ को एक समझने का अनुभव प्रदान किया था। इस समय नरसिंह स्वामी के मन मे यह विचार आया कि क्या इम प्रकार का अनुभव वाछनीय नहीं है और क्या दशन या स्पश द्वारा श्रीभगवान इस प्रकार का अनुभव उन्हें प्रदान कर मकते थे । जैसा कि प्राय होता था, जो प्रश्न उनके मन को जान्दोलित पर रहा था, वही प्रश्न उमी ममय एक अन्य भक्त ने भी किया। अचम्माल ने पूछा कि क्या भक्त सिद्धियां प्राप्त कर सकते हैं। यह वह समय था जब श्रीभगवान् फॉर्टी वसिज मॉन रिऐलिटी की रचना कर रहे थे। परिशिष्ट सहित उनके इस ग्रन्य को उनके मिदान की च्यास्या समझा जा सकता है
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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