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________________ श्रीभगवान् का दैनिक जीवन १६ इस प्रकार के समारोही के अवसर पर श्रीभगवान् सबसे अलग भव्य मुद्रा मे बैठ जाते । परन्तु प्रत्येक पुराने भक्त की ओर वह अत्यन्त आत्मीयता की दृष्टि से देखते जाते थे। एक बार का जिक्र है कि कार्तिकेय त्यौहार के अवम पर सारे आश्रम में बहुत भीड इकट्ठी हो गयी। भीड पर नियन्त्रण रखने के लिए श्रीभगवान् के चारो ओर जगला लगा दिया गया । परन्तु एक छोटा-मा लडका सीखचों को पार करके अन्दर चला आया और दौडकर श्रीभगवान के पास पहुंच गया। वह उन्हें अपना नया खिलौना दिखाने लगा। इस पर उन्होंने सेवक से हंसते हुए कहा, "देखो, तुम्हारा जगला कितना कारगर है।" __सितम्बर, १९४६ में, विरुवन्नामलाई मे श्रीभगवान् के आगमन का ५०वा त्यौहार वडे समारोह में मनाया गया था। यहां दूर-दूर से भक्तजन एकावित हुए थे। इस अवसर पर एक 'जयन्ती समारोह स्मृति चिह्न प्रकाशित किया गया था जिसमे इस अवसर के लिए लिखित अनेक लेख और कविताएँ थी। ___अन्तिम वर्षों मे दशनापियो को सख्या में वृद्धि के कारण, सामान्य दिना में मी पुराने समा-भवन मे सब लोग नहीं समा सकते थे। इसलिए प्राय श्रीभगवान् वाहर ताड के पत्तों की छत के नीचे बैठते थे। सन् १६३६ म माता की समाधि पर एक मन्दिर का निर्माण-काय प्रारम्भ हो गया था। यह मन्दिर सन् १९४६ मे वन कर तैयार हो गया । इसके साथ ही श्रीनगवान् और भक्तों के बैठने के लिए एक नये सभा-भवन का निर्माण हुया । वह शास्त्रीय सिद्धान्तों के अनुसार परम्परागत मन्दिर निर्मातामा द्वारा निर्मित एक भवन के दो भाग ये। यह भवन प्रगने ममा-भवन और कार्यालय के दक्षिण मे, उनके और मन के बीच स्थित है। पुगने सभा-भवन के दक्षिण में, इमका पश्चिमो आधा भाग मन्दिर है, पूर्वी आघा भाग एक विशाल, वर्गाकार और हवादार र है जहाँ ग्रीभगवान भवता के साथ बैठते थे।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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