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________________ १३८ रमण महर्षि होने के बावजूद, इसे उसके कब्जो से अलग करके खोला जा सकता है । इसलिए भीड और शोर से बचने के लिए जब सब लोग बाहर गये हुए थे, वह खिसक गये । वापस लौटने पर लोगो ने देखा कि दरवाजा वन्द है और चटखनी लगी है, परन्तु कमरा खाली है । बाद मे, जब कोई वहाँ नही था, वह अन्दर आ गये । वह लोग श्रीभगवान् के सामने एक दूसरे से इस बात की चर्चा करने लगे कि किस प्रकार वह बन्द दरवाजे से बाहर निकल गये और फिर सिद्धि के बल पर अन्दर आ गये । परन्तु उनके चेहरे पर जरा भी स्पन्दन नही हुआ। कुछ वर्षों वाद जब उन्होंने लोगो को यह कहानी सुनाई तो सारा समा-भवन हंसी से गूंजने लगा। वडे वार्षिक त्यौहारो के सम्बन्ध मे भी मैं यहाँ कुछ चर्चा कर दू । अधिकाश भक्त स्थायी रूप से तिरुवन्नामलाई मे नही रह सकते थे और कभीकभी ही वह वहाँ आ सकते थे। इसलिए सार्वजनिक अवकाश के दिनो मे, विशेषत कार्तिकी, दीपावली, महापूजा (माता के स्वर्गारोहण का उत्सव) और जयन्ती (श्रीभगवान् का जन्मदिन) के अवसर पर वहां बहुत भीड रहा करती थी । इन सब त्यौहारो से जयन्ती सवसे वडा त्योहार था और इसमे सबसे अधिक लोग भाग लेते थे। सर्वप्रथम वह जयन्ती समारोह मनाने के पक्ष मे विलकुल नही थे । उन्होने निम्न पद की रचना की थी तुम जो जन्म-दिन मनाना चाहते हो, अपने से पहले यह पूछो कि तुम्हारा जन्म कहाँ से हुआ है। व्यक्ति का सच्चा जन्म-दिन तब होता है जब वह उस शाश्वत सत्ता में प्रवेश करता है, जो जन्म और मृत्यु से परे है। कम से कम अपने जन्म-दिन के अवसर पर व्यक्ति को इस ससार मे प्रवेश के सम्बन्ध मे शोक मनाना चाहिए। जन्म-दिन के अवसर पर खुशियां मनाना ऐसे है जैसे शव को सजाने मे खुशियां मनाना । अपनी आत्मा को पहचानना और उसमे लय होना सच्ची बुद्धिमत्ता है। परन्तु भक्तो के लिए श्रीभगवान् का जन्म प्रसन्नता का कारण था और उन्हें जन्म-दिन मनाने की स्वीकृति देनी पडी। परन्तु उन्होने जन्म-दिन के अवसर पर या किसी अन्य अवसर पर अपनी पूजा का निपेध कर दिया । उस दिन भीड का कुछ ठिकाना न था और मव लोग श्रीभगवान के साथ खाना ग्वाते थे। आश्रय के विशाल भोजन-कक्ष मे भी सब लोग नही ममा पाते थे, वाहर अहाते मे वामो के सहारे ताड के पत्तो की छत बनाई जाती थी और सभी वहाँ वैठते थे। इस अवसर पर गरीवो को भी खाना खिलाया जाता था, कई बार तो वह दो या तीन पारियो मे खाने के लिए आते थे। पुलिम और वाल स्वाउट प्रवेश द्वारो पर खडे हो जाते थे और लोग भीड पर नियन्त्रण रखते थे ।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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