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________________ १३२ रमण महर्षि कुछ दिनो, सप्ताहो या महीनो तक जारी रह सकती है जब तक कि उसमे चिन्तन की ज्योति प्रज्वलित नही हो जाती या वह भगवान् के स्नेह बन्धन मे नहीं बँध जाता । परन्तु मानवीय प्रकृति इस प्रकार की है कि सम्भवत अधिक ध्यान दिये जाने के कारण उस नवागन्तुक मे अहभाव पैदा हो जाता है और वह अपने को अन्य भक्तो से श्रेष्ठ समझने लगता है। इसे केवल वह नवागन्तुक और भगवान् ही जानते हैं । और फिर थोडे समय के लिए उसकी उपेक्षा कर दी जाती है, जब तक कि उसमे गहन चिन्तन की प्रवृत्ति उत्पन्न नही हो जाती । दुर्भाग्यवश सदा ऐसा नही होता, कभी-कभी नवागन्तुक मे यह अभिमान बना रहता है कि उसे श्रीभगवान् का विशेष अनुग्रह प्राप्त है । साठ आठ बजे के लगभग श्रीभगवान् के पास समाचार-पत्र लाये जाते हैं । जब उनसे प्रश्न नहीं पूछे जा रहे होते, वह कुछ समाचार-पत्र खोलते और उन्हें देखते हैं, किसी दिलचस्प विषय पर अपनी सम्मति देते हैं, परन्तु राजनीतिक दृष्टि से नही । कई समाचार-पत्र सीधे आश्रम के नाम से भेजे जाते हैं । कई पत्र भक्तजन मँगाते हैं । परन्तु श्रीभगवान् द्वारा स्पर्श किये गये समाचार-पत्र को पढने के कारण प्राप्त आनन्द के लिए वह पहले उनके पास भेजे जाते हैं । जव समाचार-पत्र किसी का निजी होता है तो वह बडी दक्षता से इसे आवरण मे से निकालते हैं और पढने के बाद फिर उसी प्रकार इसमे रख देते हैं । नौ पचास से लेकर लगभग साढ़े दस बजे तक श्रीभगवान् पहाडी पर सैर किया करते थे, परन्तु इन कुछ अन्तिम वर्षों में उनका शरीर अत्यन्त क्षीण हो चुका है और वह आश्रम की भूमि मे चहलकदमी कर लेते हैं। जब वह सभाभवन छोड़ते हैं तब गहन चिन्तन मे लीन व्यक्तियो को छोडकर सभी उठ खडे होते हैं । इस अवकाश के समय वह इकट्ठे होते हैं और छोटे-छोटे दलो में वार्तालाप करते हैं- पुरुष और महिलाएँ परस्पर मिलते हैं, क्योकि वह केवल सभा भवन मे ही एक दूसरे से पृथक् होकर बैठते हैं । कई भक्त समाचार-पत्र पढते हैं, दूसरे डाक बाबू राजा से जो छोटे कद का अत्यन्त कार्य कुशल व्यक्ति है और प्रत्येक के सम्वन्ध मे अच्छी जानकारी रखता है, अपनी डाक लेते हैं | श्रीभगवान् सभा-भवन मे पुन प्रवेश करते हैं और अगर वहाँ बैठे हुए व्यक्ति उठने लगते हैं तो वह उन्हें बैठे रहने का मकेत करते हैं । "अगर आप सभा भवन मे मेरे प्रवेश करने पर उठ खड़े होते हैं तो आपको प्रत्येक व्यक्ति के प्रवेश पर खड़ा होना चाहिए ।" यह केवल परम्परागत लोकतय ही नही है इससे कुछ अधिक है । मूर्तिमान भगवान् श्रीभगवान् सबमे भगवान् के दर्शन करते हैं । एक वार गर्मी के महीनो में, उनके पास खिडकी मे विजली
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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