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________________ श्रीभगवान् का दैनिक जीवन १३१ उसका साथी, जिसे उसकी भक्ति में विश्वास नहीं है, साष्टाग प्रणाम नही करता। पण्डितो का एक दल तख्त के समीप बैठा हुआ एक सस्कृत ग्रन्थ का अनुवाद कर रहा है और किसी बात का स्पष्टीकरण करने के लिए बार-बार उठ कर श्रीभगवान् के पास जाता है । एक तीन साल का वच्चा दूसरो से पीछे नहीं रहना चाहता, वह अपनी कहानियो की पुस्तक लेकर श्रीभगवान् के पास पहुंच जाता है । श्रीभगवान उसके हाथ से अनुग्रहपूवक पुस्तक ले लेते हैं और दिलचस्पी के साथ इसके पन्ने पलटते जाते हैं। परन्तु यह पुस्तक तो फटी हुई है, वह इसे जिल्द वन्दी के लिए एक सेवक को दे देते हैं । अगले दिन बालक को जिल्द बंधी पुस्तक मिल जाती है । सेवक भी अत्यन्त परिश्रमी है। उसे परिश्रमी होना भी चाहिए क्योकि श्रीभगवान् की दृष्टि स्वय वडी पैनी है, वह हर काम वही सफाई से करते हैं और किसी काम मे ढील सहन नहीं करते । सेवक ऐसा अनुभव करते हैं कि उन्हें भगवान् का विशेष अनुग्रह प्राप्त है। पण्डित भी इसी प्रकार अनुभव करते हैं । तीन वप का बालक भी ऐसा अनुभव करता है । भिन्न-भिन्न विचारो और चरित्रों के सभी भक्तजन श्रीभगवान् द्वारा तुरन्त प्रत्युत्तर के कारण ऐसा अनुभव करते हैं कि उन्हें भगवान् का विशेष सानिध्य और अनुग्रह प्राप्त है। धीरे-धीरे व्यक्ति को श्रीभगवान् के मागदशन की सूक्ष्मता, दक्षता तथा मानवीय सस्पश का वोध होता है । उनका मार्गदशन मदृश्य होता है। उनके लिए सब खुली पुस्तके हैं । वह किसी शिष्य की ओर, यह जानने के लिए कि चिन्तन में वह कैसी प्रगति कर रहा है, भेदक-दृष्टि डालते हैं। कई बार किसी भक्त पर उनकी आँखें गडी रहती हैं मानो वह अपनी दयालुता की प्रत्यक्ष शक्ति की धारा उसमे प्रवाहित कर रहे हो। यह सब बातें यथासम्भव सामान्य रूप में होती हैं ध्यानापकषण के लिए, श्रीभगवान् एक तरफ देखने लगते हैं, समाचार पत्र पढने के दौरान श्रीभगवान् किसी भक्त की ओर स्थिर दृष्टि से देखने लगते हैं या जव भक्त स्वय आँखें बन्द किये हुए चिन्तन कर रहा हो और उसे कुछ ज्ञात न हो, वह स्थिर दृष्टि से उसकी ओर देखने लगते हैं। शायद इसका कारण यह हो कि वह इस प्रकार दोहरे खतरे से बचना चाहते हो अर्थात् दूसरे भवतो मे ईर्ष्या भाव और भगवान् के कृपा-भाजन में अभिमान पी भावना पैदा न हो। ___नवागन्तुक का विशेष ध्यान रखा जाता है, भक्त भी इसके अभ्यस्त हो चुके हैं । जव भी वह सभा-भवन मे प्रवेश करता है, हर बार उसका मुस्कराकर स्वागत किया जाता है, चिन्तन के समय उसका ध्यान से निरीक्षण किया जाता है और मैत्रीपूर्ण बातों से उसे प्रोत्साहन दिया जाता है। यह प्रक्रिया
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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