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________________ ६४ ग्मण महर्षि से यह अनुभव किया कि मेरा शरीर ऊँचा उठ रहा है। मैं देख रहा था कि नीचे के भौतिक पदार्थ क्षुद्रतर होते जा रहे हैं, और जन्तत लुप्त हो गये हैं और मेरे चारो ओर चौवियाने वाले प्रकाश का निम्सीम विस्तार है । कुछ देर वाद मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि मेरा शरीर धीरे-धीरे नीचे उतर रहा है और नीचे के भौतिक पदाथ प्रकट हो रहे हैं। मुझे यह घटना इतनी अच्छी तरह स्मरण है कि मैं अन्तत इम परिणाम पर पहुंचा कि इन्ही साधनो द्वारा सिद्ध लोग थोडे समय मे दूर-दूर की यात्राएं किया करते होगे और रहस्यमय ढग से कभी प्रकट और कभी तिरोहित हो जाते होगे। जब मेरा शरीर इस प्रकार भूमि पर उतरा, तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं तिरुवोथियुर मे था, हालांकि इस स्थान को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। मैंने अपने को सडक पर पाया और उस पर चलने लगा। सडक से कुछ दूर गणपति का मन्दिर था और मैंने इसमे प्रवेश कर लिया।" ____ यह घटना श्रीभगवान् के जीवन की वडी विलक्षण घटना है। यह बडी विलक्षण बात है कि अपने भक्त की भक्ति या कप्ट से द्रवित होकर वह तुरन्त रहस्यमय ढग स महायता के लिए दौडते आयें और समस्त सिद्धियो के होते हुए भी भौतिक जगत् की अपेक्षा सूक्ष्म जगत् की शक्तियो के प्रयोग मे दिलचस्पी न रखें और भक्त की प्राथना पर अगर कोई अदभुत घटना घट जाय, तो वाल-सुलभ मरलता से कहे, "मेरा विचार है, यही सिद्ध लोग करते हैं।" यही वह उदानमीनता का भाव था, जिमका विकास गणपति गाम्ग्री नही कर सके। उन्होने एक बार भगवान से पूछा था, "क्या मेरे सव ध्येयो की प्राप्ति के लिए 'मैं' के स्रोत की खोज करना पर्याप्त है या इसके लिए मन्याध्ययन की आवश्यकता है ।" श्रीभगवान् मदा 'मैं' का निषेध करते हुए कहते उसके ध्येय, उसको महत्वाकाक्षाएँ, देश का पुनरुत्थान और धम का पुनरभ्युदय । धीभगवान् ने सक्षेप में उत्तर दिया, "पहला माधन पर्याप्त होगा।" और जव शास्त्री ने अपने ध्येयो तथा यादों के सम्बन्ध मे वक्तव्य जारी रया तर उन्होंने कहा, "अच्छा यह होगा कि आप अपना समम्त भार भगवान पर टान दें। वह आपके समस्त दायित्व उठा नेगा और आप उनमे मुक्त हो जायेंगे । वह अपना काय करेगा।" मन् १९१७ मे गणपति शास्त्री नया अन्य भक्तो ने श्रीभगवान् ये मम्मुग पई प्रश्न ग्मे और ये प्रश्न तथा उत्तर श्री रमण गीता में मग्रहीत किय गये हैं। उम पुस्तक मे उनी अधिकाश पुस्तकों की अपेक्षा अधिक विद्वत्ता और मंडान्तिर जान पलाता है । गणपति शास्त्री या प विप प्रश्न यह था कि अगर किसी व्यक्ति को विशेष मिद्धियो की पोज में ज्ञान लान हो जाय तो
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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