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________________ ६० रमण मह का परामर्श मुझे देगा, तो सच्चा परामर्श कौन देगा " श्रीभगवान् ने उन्हे विश्वास दिलाया कि यही सच्चा मार्ग है । " विकास के अगले चरण का स्वय मुदालियर ने इस प्रकार वणन किया है " मैंने कुछ समय तक इस स्वप्न - उपदेश का अनुसरण किया, फिर मुझे दूमरा स्वप्न आया । इस बार जव श्रीभगवान् प्रकट हुए, मेरे पिता मेरे निकट खडे हुए थे । उन्होने मेरे पिता की ओर संकेत करते हुए कहा, "यह कौन हैं उत्तर की दार्शनिक शुद्धता के प्रति कुछ सकोच के साथ मैंने उत्तर दिया, "मेरे पिता ।" महपि साभिप्राय मुस्करा उठे और मैंने कहा, "मेरा उत्तर सामान्य बोलचाल की भाषा के अनुसार है, न कि दर्शन की", क्योकि मुझे यहाँ स्मरण था कि मैं शरीर नही है । महपि ने मुझे अपने निकट खीच लिया और अपनी हथेली पहले मेरे सिर पर रखी, फिर मेरी दाहिनी छाती पर और अपनी अंगुली से मेरे चूचुक को दवाया । इससे मुझे कुछ पीडा अनुभव हुई । परन्तु यह उनकी अनुकम्पा थी, मैंने इसे शान्तिपूर्वक सहन कर लिया । तब मुझे इम वात का पता नही था कि उन्होने मेरी वायी छाती के वजाय दायी छाती को क्यो दवाया । ११ इस प्रकार मान दीक्षा ग्रहण करने मे अमफल होकर, मुदालियर को स्वप्न मे स्पर्श द्वारा दीक्षा दी गयी । नटेश उन व्यक्तियों में से थे, जो ज्ञान प्राप्ति की खोज मे गृहस्थ जीवन का परित्याग कर अकिंचन भिक्षुक की तरह जीवनयापन करने के लिए उत्सुक य। परन्तु श्रीभगवान् ने इसे प्रोत्साहन नही दिया । "जिस प्रकार आप यहाँ रहते हुए गृहस्थ जीवन की चिन्ताओ को पास नही आने देते, उसी प्रकार आप घर जाकर भी सामारिक चिन्ताओ से सवथा उदासीन और अनासक्न रहे ।" मुदालियर मे अब भी अपने गुरु के प्रति पूण निभरता और दृढ विश्वास का अभाव था । उन्होने श्रीभगवान् के स्पष्ट आदेश के बावजूद गृह परित्याग कर सन्यास ले लिया। उन्हे अनुभव हुआ कि श्रीभगवान् की भविष्यवाणी के अनुसार उनके माग की कठिनाइयों बढ़ गयी है, कम नही हुई । कुछ वर्प वाद वह परिवार मे वापस लोट आये और फिर काम में जुट गये । बाद उनका भक्तिभाव चढता गया । उन्होंने श्रीभगवान् को प्रशस्ति मे तमिल में कविताओ की रचना की। और अन्त मे उन्ह गुरु की वह मौसिम शिक्षाएँ प्राप्त हुई, जिनके लिए वह इतने अधिय उत्सुक थे । 'ए कंप्रिज्म ऑफ इस्ट्रक्शन' नामक पुस्तक मे गुरु और उसकी अनुकम्पा के सिद्धान वा अत्यन्न सुदर वणन है और इसमे अधिकाशत श्रीनटेश के प्रश्ना वा उत्तर दिया गया है । 9 इसका कारण १२ अध्याय में दिया गया है ।
SR No.034101
Book TitleRaman Maharshi Evam Aatm Gyan Ka Marg
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAathar Aasyon
PublisherShivlal Agarwal and Company
Publication Year1967
Total Pages230
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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