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________________ आगम और आगमेतर स्रोत ३७ स्थानयोग के तीन प्रकार है— (9) ऊर्ध्वस्थान (२) निषीदन स्थान (३) शयनस्थान । ऊर्ध्व स्थानयोग • साधारण सविचार सणिरुद्धं तहेव वोस । समपादमेगपाद, गिद्धोलीणं च ठाणाणि । । मूलाराधना ३ । २२३ ऊर्ध्व के सात प्रकार है-साधारण, सविचार, सनिरुद्ध, व्युत्सर्ग, समपाद, एकपाद एव गृद्धोड्डीन । निषीदन स्थानयोग • पच निसिज्जाओ पण्णत्ताओ त जहा — उक्कुडुया, गोदोहिया, समपायपुता, पलियका, अद्धपलियंका । ठाणं ५ ।५० निषीदन स्थानयोग के पाच प्रकार है-उत्कटुका, गोदोहिका, समपादपुता, पर्यड्का, अर्धपर्यड्का । शयन स्थानयोग • उड्डमाई य लग इसायी य । उत्ताणोमच्छिय एगपाससाई य मडयसाई य । । मूलाराधना ३ । २२५ शयन स्थानयोग इस प्रकार है लगण्डशयन, उत्तानशयन, अधोमुखशयन, एक पार्श्वशयन, मृतकशयन, ऊर्ध्वशयन । ऊर्ध्वस्थान • अवि उड्ढठाण ठाइज्जा । आयारो ५। ६१ ऊर्ध्व (घुटनो को ऊंचा और सिर को नीचा) कर कायोत्सर्ग करे।
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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