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________________ आसन प्रयोजन ध्यान के लिए • येन येन सुखासीना, विदध्युर्निश्चल मन । तत्तदेव विधेय स्यान्मुनिभिबन्धुरासनम् । । जिस आसन से मन स्थिर हो वही आसन विहित है । अवि झाति से महावीरे, आसणत्ये अकुक्कुए झाण । आयारो ६।४।१४ भगवान उकडू आदि आसनो मे स्थित और स्थिर होकर ध्यान करते थे । स्वरूप ज्ञानार्णव २८ ।११ कायक्लेश • ठाणा वीरासणाईया, जीवस्स उ सुहावहा । उग्गा जहा धरिज्जति, कायकिलेस तमाहिय । । उत्तरज्झयणाणि ३० । २७ आत्मा के लिए सुखकर वीरासन आदि उत्कट आसनो का जो अभ्यास किया जाता है, उसे कायक्लेश कहते है । आसनो के तीन प्रकार ● उड्ढनिसीयतुयट्टणठाणं तिविह तु होई नायव्व । ओघनियुक्ति भाष्य, गाया १५२
SR No.034100
Book TitlePreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherUnknown
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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